Ketu Grah Ka Hamare Jiwan Par Prabhav
Ketu Ke Shubh Ashubh Prabhav
ज्योतिष अनुसार केतु आध्यात्मिक सफलता का कारक ग्रह है जिसकी प्रकृति पित प्रधान है । इसके प्रभाव मंगल के समान भी कहे गए हैं । ज्योतिष अनुसार केतु मीन राशि का स्वामी है, और धनु राशि में उच्च बल को प्राप्त होता है जबकि मिथुन राशि में नीच बल का होता है । इस के इलावा केतु मुख्य रूप से पुत्र संतान, भांजे और साले के सुख का कारक है, इस के इलावा केतु आध्यात्मिक तरक्की, ज्योतिष जैसे विषयों को समझना, त्याग और मोक्ष, दान पुण्य, ध्वजा, ऊंचाई, दरार, मन में शक और वहम या फिर मानसिक मज़बूती यह सब केतु के कारक तत्व हैं । जन्म कुण्डली में केतु शुभ प्रभाव में हो तो ऐसे व्यक्ति को चेले यानी उसके followers आसानी से बनते हैं और उसको सुख भी देते हैं, ज्योतिष और अध्यात्म के माध्यम से जीवन की तरक्की होती है, ऐसे व्यक्ति को पुत्र की तरफ से सुख मिलता है, साले का सुख भी मिलता है, दृर स्थान पर जाकर सुख और तरक्की होती है , जबकि अगर जन्म कुण्डली में केतु अशुभ प्रभाव में हो तो ऐसा व्यक्ति पुत्र, साले और भांजे के सुख से विहीन होता है, मन में रिश्तों को लेकर शक और वहम की वजह से प्रेम संबंधों का सुख नहीं मिलता, रिश्ते और कार्य अचानक से बनते और टूटते हैं, घर की दीवारों पर दरारें होती हैं , ऊंचाई से डर लगता है , पैर साफ नहीं रहते ।
Ketu Grah Ka Hamare Jiwan Par Prabhav
केतु अलगाव है ध्यान है साधना है तर्क शक्ति है चरित्र है एक मशाल है जिससे सब कुछ रोशन होता है जैसे के घर का बिजली का मीटर और स्विच बोर्ड । वास्तु में इसकी दिशा अग्नि कोण है । जन्म कुंडली के जिस भाव में केतु होता है व्यक्ति उस भाब से संबंधित विषयों से सुख की कमी का अनुभव करता है । जैसे कि लग्न भाव में केतु की स्थिति हो तो ऐसा व्यक्ति बिना दूसरों की मदद और सहयोग से कोई भी कार्य नहीं कर पाता, उसका कैरियर और आय के साधन भी घर परिवार के सहयोग से ही बनते हैं । इसी तरह द्वितीय भाव में केतु की स्थिति हो तो व्यक्ति विषय वस्तुओं का भोग खुद की मर्ज़ी से नहीं कर पाता, हर छोटी से छोटी वस्तु परिवार के अन्य सदस्यों की सहमति से वह खरीदता है । इसी तरह तृतीय भाव में केतु की स्थिति व्यक्ति को समाज और दुनियादारी में आसानी से घुलने मिलने नहीं देती, ऐसा व्यक्ति कम बोलने वाला और कुछ भी ना छिपाने वाला होता है । इसी तरह चतुर्थ भाव में केतु की स्थिति प्रॉपर्टी के सुख देरी से देती है, हालांकि माता पिता के बनाये घर में रहने में कोई समस्या नहीं है लेकिन खुद से ज़मीन खरीद कर घर बनाने से तरक्की रुक जाती है । इसी तरह पंचम भाव में केतु की स्थिति शिक्षा , तरक्की और संतान प्राप्ति में बाधा देती है । इसी तरह छठे भाव में केतु की स्थिति रोग कर्ज़ शत्रुता विवाद आय के स्थाई साधन ना होना कार्यो में असफलता देती है । इसी तरह सप्तम भाव का केतु मूत्र अंगों से जुड़े रोग, स्त्री सुख की कमी , घर परिवार के सुख से नाखुश ऐसा व्यक्ति होता है । इसी तरह अष्टम भाव केतु यत्रयो में कष्ट, दुर्घटना , अचानक धन हानि , ऐसे रोग जिनका कारण जल्दी पता नहीं लगता , जुआ सट्टा के माध्यम से आर्थिक हानि होती है । इसी तरह नवम भाव केतु ग्रहस्थ सुख की कमी, आध्यात्मिक तरक्की देता है, दान पुण्य, यज्ञ , धार्मिक स्थल की यात्रा, घूमने फिरने पर खर्च ऐसा व्यक्ति करता है । इसी तरह दसम भाव केतु होने पर व्यक्ति के पास आय के स्थाई साधन नहीं होते, बार बार नोकरी लगती और छूट जाती है, सरकारी कार्यो में ऐसे व्यक्ति को रुकावट आती है , प्रॉपर्टी की खरीद बेच में ऐसे व्यक्ति को रुकावट आती है । इसी तरह एकादश भाव में केतु की स्थिति व्यक्ति को आय प्राप्ति में रुकावट, बड़े भाई बहनों की तरफ से सुख की कमी, अधिकारी लोगों से परेशानी, ग्रहस्थ सुख में समस्या, संतान की तरफ से परेशानी होती है । इसी तरह बाहरवें भाव में केतु की स्थिति व्यक्ति को घर परिवार के प्रति गैर जिम्मेदार बनाती है, अपने ही घर परिवार के सदस्यों की जरूरतों को ऐसा व्यक्ति समझ नहीं पाता, विवाह में देरी होती है, पुत्र सुख भी देरी से मिलता है , अनावश्यक खर्च बने रहते हैं , यात्रा और घूमने फिरने पर खर्च होते हैं । लेकिन यहां जानकारी के लिए बता दें कि राहु केतु खुद से कभी भी शुभ या अशुभ प्रभाव नहीं देते, बल्कि जिस राशि में विराजमान होते हैं उस राशि के स्वामी ग्रह अनुसार इनका व्यवहार होता है यदि वह ग्रह योगकारक है तो राहु केतु भी योगकारक होंगे, लेकिन यदि वह ग्रह मारकेश है तो राहु केतु भी मारकेश की तरह फल देंगे ।