Sukh Vaibhav Laxmi Kripa prapti Ke Upay
दीपावली का अवसर है तो बात लक्ष्मी कृपा, भौतिक सुख और वैभव की प्राप्ति के बारे में करते हैं । ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जीवन में सब कुछ कुण्डली के 12 भाव और नवग्रहों के आधीन रहता है । नवग्रहों की अनुकूलता हो तो जीवन में हर तरह के सुखों की प्राप्ति होती है, वही नवग्रहों की स्थिति विपरीत होने पर हर रूप से जीवन कष्टमय हो जाता है । हालांकि यह सब कुछ पूर्व जन्म में किये गए कर्मो पर भी निर्भर होता है , जिसकी वजह से नवग्रह अपनी शुभ या अशुभ प्रभाव जीवन पर देते हैं । इस पोस्ट में बात करते हैं जीवन में धन वैभव, सुख समृद्धि और लक्ष्मी कृपा की :
ज्योतिष में धन वैभव लक्ष्मी कृपा प्राप्ति विचार : ज्योतिष्य आधार पर बात करें बहुत सारे शुभ योगों के बारे में जानकारी दी गई है जैसे कि चन्द्र मंगल युति लक्ष्मी योग, बुध शुक्र युति लक्ष्मी नारायण योग, राहु की शुभ स्थिति से बनने वाला अष्टलक्ष्मी योग, चन्द्र गुरु से बनने वाला गजकेसरी योग, महापुरुष योग ( मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि की मज़बूत स्थिति केंद्रीय भावो में ) कुछ ऐसे योग हैं जो सुखद जीवन और लक्ष्मी कृपा देते हैं , साथ में शर्त यह भी है कि यह ग्रह वक्री या अस्त या शत्रु राशि में नही होने चाहिए , तभी यह योग फलित होते हैं । यह तो बात हुई ग्रहो की युति के आधार पर ।
आर्थिक और भौतिक सुख : अभी बात करते हैं भावो की स्थिति के आधार पर । कुण्डली के 12 भावो में 2nd भाव धन संग्रह का, 4th भाव सुख स्थान, 11th भाव लाभ और आय , जबकि 12th भाव खर्च से संबंधित होता है । कुण्डली का 2nd और 4th भाव यह धन और सुख प्राप्ति के लिए सब से महत्वपूर्ण भाव हैं, क्योंकि अनुभव में यही देखने मे आया है कि यदि 2nd और 4th भाव में नैसर्गिक शुभ ग्रह ( चन्द्रमा, बुध, गुरु, शुक्र ) हो तो ऐसे जातक को कम मेहनत पर भी ज़्यादा धन प्राप्ति हो जाती है या फिर पैतृक धन संपदा ही इतनी होती है कि जातक को धन की कमी का अहसास नहीं होता । जबकि इसके विपरीत यदि कुण्डली के 2nd और 4th भाव में नैसर्गिक अशुभ ग्रहों ( सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु ) की स्थिति हो तो ऐसे जातक खुद से कितना भी धन कमा ले लेकिन जीवन में सुख और वैभव की कमी बनी रहती है । अब बात करते हैं बाकी बचे भाव यानी एकादश और व्यय भाव की , ज्योतिष अनुसार जन्म कुण्डली के एकादश भाव को happiness in general भाव कहा जाता है, यानी अगर यह भाव खराब हो तो जीवन के किसी भी कार्य में व्यक्ति सफलता से दूर हो जाता है, जबकि 12वा यानी व्यय भाव में यदि अशुभ और पापी ग्रह हों तो भी व्यक्ति के खर्च अनावश्यक बढ़े होते हैं, जीवन में रोग और दरिद्रता व्यक्ति का पीछा नहीं छोड़ते । यानी कुल मिला कर सुख समृद्धि , आर्थिक खुशहाली के लिए जन्म कुण्डली के 2, 4, 11 और 12वे भाव , इनके स्वामी ग्रहों की स्थिति शुभ भावों में शुभ ग्रहों के सानिध्य में होना ज़रूरी है ।
कारक ग्रह हैं महत्वपूर्ण : जबकि कारक ग्रहों की बात करें तो ज्योतिष अनुसार शुक्र विलासिता का कारक ग्रह, ब्रहस्पति बरकत का कारक ग्रह और चंद्रमा सुख का कारक ग्रह है । आपका कोई भी लग्न हो इन 3 ग्रहों की स्थिति 3, 6, 8, 12वे भाव में नहीं होनी चाहिए , और ना ही शनि राहु / केतु से इन ग्रहों का संबंध होना चाहिए । ज्योतिष अनुसार विशेष कर 2 और 11वे भाव के स्वामी ग्रहों का केंद्र और त्रिकोण भाव में होना या फिर इनके स्वामी ग्रहों से संबंधित होना भौतिक और आर्थिक सुख प्राप्ति से संबंधित राजयोग देता है । लेकिन अगर यह ग्रह 6, 8, 12 में हैं या फिर शनि राहु / केतु से संबंधित हैं तो किसी विद्वान के माध्यम से कुण्डली विश्लेषण करवा कर उचित उपाये करवाने चाहिए ।
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कुछ महत्वपूर्ण उपाये : उपायों की बात करें तो लक्ष्मी कृपा प्राप्ति के लिए घर की महिलाओं का सम्मान करना चाहिए , गौ सेवा करने से भी लक्ष्मी कृपा प्राप्त होती है । यदि कर्ज़ और बेरोजगारी की स्थिति है तो मंगल स्त्रोत, गणेश अथर्वशीर्ष, विष्णु सहस्त्रनाम, कनकधारा स्त्रोत , यह कुछ ऐसे पाठ हैं जो लगातार एक वर्ष तक करने पर जीवन में चमत्कारी परिणाम मिलते हैं, स्थिति सुखद होती है । चन्द्रमा, बुध और शुक्र ग्रह यदि पीड़ित हो तो इनके उपाये लग्न राशि के अनुसार करने चाहिए । लग्नेश के मित्र ग्रहो के मन्त्र जाप और शत्रु ग्रहो की चीज़ें गरीबो में दान करने से स्थिति सुखद होती है ।