Lagan Bhav Me Shani Ke Fal Aur Upay
जन्म कुण्डली का यह भाव सूर्य और मंगल से प्रभावित होता है । यह दोनों ही शनि के शत्रु ग्रह हैं इस नाते यहाँ विराजमान शनि को सूर्य और मंगल का साथ नहीं मिलता, खास कर अगर ऐसी जन्म कुण्डली में राहु केतु भी अशुभ प्रभाव में हों तो ऐसे जातक को 48 वर्ष तक खुद का घर नहीं बनाना चाहिए । यहां विराजमान शनि को अगर मित्र ग्रहों का साथ ना मिले जैसे कि अगर ऐसी जन्म कुण्डली में बुध खराब हो तो ऐसे जातक की शिक्षा प्राप्ति में और उस के बाद कामकाज में बाधा आती है, जबकि अगर शुक्र की स्थिति खराब हो तो माता और जीवनसाथी के सुख खराब होते हैं । लग्न भाव में शनि की स्थिति हो तो ऐसा जातक अकेला किसी भी कार्य के लिए जाए तो उसको सफलता नहीं मिलती, लग्न भाव में शनि की स्थिति हो और दसम भाव में शनि के शत्रु ग्रह हों तो ऐसा जातक आलसी होता है । इस के इलावा लग्न भाव में शनि शत्रु राशि का हो और अन्य पापी या क्रूर ग्रहों की दृष्टि में हो तो जातक के सर पर चोट लगती है, खास कर 21 और 22वे वर्ष में , उसके बाद 28 से 32 वर्ष के दरमियान भी सर और आंखों का ख्याल रखना चाहिए , ऐसे जातक को शनि के अशुभ प्रभाव दूर करने के लिए चाहिए कि वह काले नीले और हरे रंग के वस्त्रों से परहेज़ करे, घर में अविवाहित या विधवा बुआ या बहन को ना रखे, ससुराल वालों से बिजली के उपकरण लेने से भी परहेज करें । लग्न भाव में शनि हो तो ऐसा जातक जल्दी से अपनी बात से सामने वाले को प्रभावित नहीं कर पाता, अच्छी काबिलियत होने के बावजूद भी उसका दिमाग जल्दी नहीं कार्य करता, जैसे कि ऐसे कार्य जिन में एक निश्चित समय में कोई कार्य पूरा करना हो वह नहीं कर पाते, प्रतिस्पर्धा में यह हार जाते हैं, accounts और गणित के कार्य जो बहुत जल्दी करने होते हैं यह नहीं पाते । खास कर घूम फिर कर किये जाने वाले कार्य , बहुत सारे लोगों से वार्तालाप करने के कार्य, देखरेख के कार्य यह नहीं कर पाते । लग्न भाव में शनि की स्थिति हो और 3, 5, 7, 9, 11वे भाव में शनि के शत्रु ग्रह हों तो भी शनि अशुभ फल देते हुए कार्यक्षेत्र और ग्रहस्थ जीवन दोनों में समस्या देता है । ऐसे जातक को घर बनाने के बाद, संतान प्राप्ति के बाद धन और स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं होती हैं । लग्न भाव में विराजमान शनि सप्तम और दसम भाव पर दृष्टि देते हुए जीवनसाथी और कामकाज के सुख खराब करता है , क्योंकि ज्योतिष अनुसार शनि की दृष्टि शुभ नहीं कही गई , हालांकि अगर यहाँ शनि की मित्र राशियां हों तो अशुभ प्रभाव में कमी ज़रूर आती है । इस के इलावा लग्न भाव में शनि हो और सूर्य खराब हो जैसे कि 4, 7, 8, 12वे भाव में सूर्य हो तो पिता , सरकार और कामकाज के सुख खराब होते हैं, इसके इलावा अगर मंगल खराब हो जैसे कि मंगल की स्थिति 4, 7, 8, 12वे भाव में हो तो भाई बंधुओं से, जीवनसाथी से समस्या आती है साथ ही प्रॉपर्टी के सुख भी खराब होते हैं । खास कर अगर शनि छठे भाव का स्वामी होकर विराजमान हो तो बालों से जुड़े रोग, आंखों से जुड़े रोग, एलर्जी से जुड़े रोग, फेफड़ों के रोग, ठंड के रोग, अस्थमा , पेट के रोग देता है । मंगल अगर ऐसी जन्म कुण्डली में खराब हो तो एक्सीडेंट योग भी होता है, मंगल या केतु की दशा में । ऐसे जातक को चाहिए कामकाजी सुख के लिए ब्रहस्पति को शुभता दे और घरेलू सुख के लिए मंगल को शुभता दे ।
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लग्न / पहले भाव में विराजमान शनि से शुभता प्राप्ति के उपाये
* शनिवार के दिन लोहा, चमड़ा, सरसों का तेल, उड़द की दाल, काले वस्त्र दान करें ।
* सूर्य और मंगल अगर खराब हैं तो इनके भी उपाये करें ।
* हनुमानजी की पूजा आराधना करें, बंदरों को गुड़ और चना खिलाएं ।
* शुभ कार्यों के समय नमकीन चीजों का दान करें ।
* नीम ( कामकाजी सुख ) और केले ( घरेलू सुख ) के पेड़ पर मीठा दूध अर्पित करें ।