Janam Kundli Me Pitar Dosh Ke Lakshan
जन्म कुण्डली से जानिए पितर दोष के लक्षण
दोस्तों हमारी पिछली पोस्ट में हम ने चर्चा की थी पितर दोष के प्रकार जैसे कि देव ऋण ऋषि ऋण तथा मनुष्य ऋण । इसी जानकारी को आगे बढाते हुए आपको जानकारी देते हैं कुछ ऐसे लक्षणों के बारे में जिन से पता लगे कि आपके पितर आपसे नाराज़ हैं , और उनकी कृपा प्राप्ति के लिए आपको कुछ विशेष उपाये करने की ज़रूरत है । सब से पहले आपको बता दें कि परिवार में माता की तरफ से 3 पीढ़ी तथा पिता की तरफ से 7 पीढ़ियों तक पितर दोष का प्रभाव रहता है , यानी कि अलग माता की 3 पीढ़ी तथा पिता की 7 पीढ़ियों में से अगर कोई आकस्मिक दुर्घटना से जीवन यात्रा पूरी कर गए हों जैसे कि अग्नि से जल कर , करंट या बिजली के माध्यम से , जल में डूब कर , सड़क हादसे में या फिर किसी लाइलाज बीमारी की वजह से जीवन यात्रा पूरी कर गए हो , जिसकी वजह से वह घर परिवार के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी ना निभा पाए हो , और ज़िम्मेदारी ना निभा पाने के कारण माने उनके कर्म अधूरे रह जाने के कारण उनकी गति या मोक्ष ना हुआ हो , ना तो वह किसी अन्य लोक जैसे ब्रह्म लोक या पितर लोक को गए हो और ना ही उनका पुनर जन्म हुआ हो ना ही किसी अन्य योनि में गए हो बल्कि शरीर ना मिलने से प्रेत योनि में वह दुख झेल रहे हो । तो ऐसी स्थिति में जब वह खुद शरीर ना मिलने से कर्म ना करने की वजह से मुक्ति के मार्ग पर नहीं जा सकते , इस नाते वह अपने कुल परिवार के सदस्यों से यह उमीद करते हैं कि वही अब उनके नाम से दान पुण्य करते हुए उनकी मुक्ति का मार्ग बनाएं ।
पितर ऋण का अन्य पहलू : यह तो हुई एक बात, लेकिन पितर दोष का एक दूसरा पहलू भी होता है जहाँ कारण आकस्मिक मृत्यु नहीं होती , बल्कि उनके द्वारा किये गए दुष्कर्म होते हैं, माने कि माता की 3 पीढ़ी तथा पिता की 7 पीढ़ियों में से कोई भले ही पूरी आयु भोग कर गया हो लेकिन जीवन में दुष्कर्म किये हो , जैसे कि शास्त्रों अनुसार किसी की अमानत रखना, किसी की ज़मीन पर नाजायज़ कब्ज़ा करना, किसी के लिए झूठी गवाही देना, किसी की संतान को कष्ट देना , किसी स्त्री को कष्ट देना यह सब से बड़े दुष्कर्म कहे गए हैं , तो इस तरह के दुष्कर्म करने की वजह से भी अगर कोई सदस्य नरक गामी हो तो वहां से भी वह ऐसी इच्छा रखता है कि उनके कुल तथा परिवार के सदस्य उनके नाम से दान पुण्य करते हुए उनके लिए उन नरक यातनाओं से मुक्ति का रास्ता बनाएं । और क्योंकि वह नरक यातनाओं में होते हैं हमें वह सिर्फ आभास करवाते हैं कि उनको मदद की ज़रूरत है , कभी वह हमारी व्यक्तिगत तरक्की में बाधा डालते हैं, कभी शिक्षा प्राप्ति कभी नोकरी प्राप्ति तो कभी विवाह तथा संतान प्राप्ति में बाधा डालते हैं , तो कभी चोट तथा दुर्घटना के रूप में हमें शारीरिक कष्ट देते हैं । यह सब पितर दोष के लक्षण होते हैं जो पितर दोष से पीड़ित व्यक्ति के जीवन में देखने को मिलते हैं ।
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जन्म कुण्डली में पितर दोष के लक्षण : अब आपको जानकारी देते हैं कि जन्म कुण्डली में भाव तथा ग्रहों की स्थिति के आधार पर कोनसे लक्षण पितर दोष को दर्शाते हैं । दोस्तों जैसे कि हम ने ऋषि ऋण की बात की जो कि हमारी शिक्षा प्राप्ति तथा संस्कार से संबंधित होता है , जैसे कि हमारी माता हमें जन्म देती हैं हमारा पालन पोषण करती हैं , इस नाते ऐसे ऋण का कारक ग्रह चंद्रमा और जन्म कुण्डली के चतुर्थ भाव से यह ऋण संबंधित होता है । इस के बाद हम ने ईश्वरीय तथा देव ऋण की बात की , विष्णु पुराण में सूर्य देव को भी भगवान विष्णु का अवतार बताया गया है वही जगह पिता हैं जगत की आत्मा हैं , इस के इलावा ब्रहस्पति ग्रह मीन राशि के स्वामी हैं यानी दैवीय कृपा ब्रहस्पति ग्रह से प्राप्त होती है , इस नाते जन्म कुण्डली के 5 , 9 और 12 भाव तथा नवग्रहों में सूर्य और ब्रहस्पति से यह ऋण संबंधित होता है । इस के बाद हम ने मनुष्य ऋण की बात की, जैसे कि इस समाज में इस दुनियादारी में सखे संबंधी मित्र तथा करीबी रिश्तेदारों के माध्यम से हमें जो मदद प्राप्त होती है उसका ऋण भी हम पर बना रहता है, ऐसी मदद का कारक ग्रह मंगल है और जन्म कुण्डली के लग्न तथा अष्टम भाव से संबंधित यह ऋण होता है । इस तरह कुल मिला कर सूर्य, चन्द्रमा, मंगल या ब्रहस्पति जन्म कुण्डली के 1, 4, 5, 8, 9 और 12 भाव में विराजमान होकर शत्रु ग्रहों से पीड़ित हों ऐसी ग्रह स्थिति उन ग्रहों से संबंधित पितर दोष को दर्शाती है ।