Lesson 34 - Janam Kundli Se Jaane Santan Sukh
संतान की तरक्की और संतान सुख के बारे में जानने की इच्छा हर माता - पिता की होती है , खास कर संतान की अपनी ज़िंदगी की खुद की तरक्की के बारे में हर माता - पिता को चिंता रहती है , और खास कर संतान के विवाह के बाद संतान माता - पिता को सुख देगी या नहीं इस बात को लेकर भी चिंता लगी रहती है । हालांकि हर व्यक्ति अपना भाग्य साथ लेकर आता है लेकिन कुछ हद तक संतान की तरक्की और संतान सुख के बारे में माता - पिता की कुण्डली से देखा जा सकता है ।
पंचम भाव और पंचमेश : ज्योतिष अनुसार जन्म कुण्डली के 12 भावों में से पंचम भाव को संतान सुख के लिए देखा जाता है । पंचम भाव में आने वाली राशि और पंचमेश के नैसर्गिक स्वभाव , तथा पंचम / पंचमेश से बनने वाले अन्य ग्रहों के संबंध से संतान सुख के विषय में विचार किया जाता है । यदि पंचमेश शुभ ग्रह ( चन्द्रमा, बुध, गुरु, शुक्र ) हो तो संतान अपनी जिंदगी में कामयाब होती है , ऐसे माता - पिता को संतान के कैरियर और व्यवहार को लेकर कोई चिंता नहीं करनी चाहिए । जबकि यदि पंचमेश अशुभ ग्रह ( सूर्य, मंगल, शनि ) हो तो ऐसे माता - पिता को संतान के कैरियर और व्यवहार को लेकर खास ध्यान देने की ज़रूरत होती है । इस के इलावा यदि पंचम भाव पर अशुभ ग्रहों ( मंगल, शनि, राहु, केतु ) का दृष्टि प्रभाव हो , या फिर पंचमेश पीड़ित हो अस्त या नीच राशि का हो , और अंतरदशा अनुकूल ना हो तो संतान प्राप्ति में देरी होती है । पंचमेश मित्र / अपनी / उच्च राशि में हो तो संतान सफल होने के साथ साथ सुख भी देती है , लेकिन यदि पंचमेश शत्रु / नीच राशि का हो तो संतान कामयाब भले ही हो जाये लेकिन सुख कभी नहीं देती ।
कारक ग्रह हैं महत्वपूर्ण : ज्योतिष अनुसार पुत्री सुख का विचार बुध ग्रह से जबकि पुत्र सुख का विचार केतु ग्रह से किया जाता है । इस लिए यदि बुध ग्रह अशुभ भाव खास कर 8th या 12th भाव में हो और अशुभ ग्रहों ( मंगल, शनि, राहु, केतु ) की दृष्टि / युति प्रभाव में हो तो ऐसे माता - पिता को पुत्री संतान की वजह से कष्ट होता है , जबकि अगर जन्म कुण्डली में बुध ग्रह शुभ भाव खास कर 4, 5, 6, 7, 9, 11वे में हो और शुभ ग्रहों ( चन्द्रमा, गुरु, शुक्र ) से संबंधित हो तो ऐसे माता - पिता को पुत्री संतान सुख देती है । जबकि पुत्र संतान के लिए केतु का विचार किया जाता है , जन्म कुण्डली में केतु किसी ऐसी राशि में हो जो ग्रह केंद्र या त्रिकोण का भी स्वामी हो और केतु शुभ ग्रहों से दृष्ट हो , नक्षत्र स्वामी 6, 8, 12 में ना हो तो ऐसे माता - पिता को पुत्र संतान सुख की प्राप्ति होती है । इस के विपरीत केतु का नक्षत्र स्वामी ग्रह पीड़ित हो या 6, 8, 12वे भाव में हो तो पुत्र संतान की वजह से कष्ट होता है , ऐसी संतान आचरण से खराब हो सकती है , सामाजिक मानहानि देती है ।
ब्रहस्पति और एकादश भाव : ज्योतिष अनुसार क्योंकि ब्रहस्पति ग्रह को सुख का कारक ग्रह माना गया है , और वंश वृद्धि का कारक भी ब्रहस्पति को माना गया है , इस लिए विवाह एवं संतान प्राप्ति के लिए ब्रहस्पति ग्रह महत्वपूर्ण हैं । खास कर जब किसी की जन्म कुण्डली के 2, 5, 9, 12वे भाव में बृहस्पति के शत्रु ग्रह ( बुध, शुक्र, राहु ) हो तो ऐसे व्यक्ति के विवाह में देरी , संतान सुख में देरी तथा संतान के कैरियर को लेकर भी ऐसे माता - पिता परेशान रहते हैं । इस के इलावा जन्म कुण्डली में बृहस्पति का शनि / राहु से युति / दृष्टि से पीड़ित होना भी अध्यात्म दोष दर्शाता है ऐसी ग्रह स्थिति होने पर भी विवाह और फिर संतान को लेकर चिंता रहती है । यदि जन्म कुण्डली का एकादश भाव शुभ ग्रहों से रहित हो तो भी घर परिवार , विवाह , संतान, ग्रहस्थ जीवन को लेकर परेशानी होती है । इस लिए जन्म कुण्डली का उचित विश्लेषण करवा कर उपाये करने चाहिए , अगर पंचम / पंचमेश या ब्रहस्पति पीड़ित हो तो उसका उचित उपाये करवाना चाहिए ।