Lesson 3 - Rashion Se Judi Jaankari
जैसे कि पिछली पोस्ट में हम में चर्चा में जाना कि जीवन चक्र 360 डिग्री को 12 बराबर हिस्सों में विभाजन को 12 राशियों का नाम दिया गया है जो क्रम अनुसार मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन है । इस चर्चा को आगे बढ़ाते हैं :
राशियां भगवान के विराट स्वरूप की अंग हैं : जैसे कि मेष राशि मस्तक, वृषभ राशि आंखे और सर, मिथुन राशि भुजाएँ, कर्क राशि हृदय, सिंह राशि पेट , कन्या राशि नाभि , तुला राशि कमर , वृश्चिक राशि गुप्तांग, धनु राशि जांघे, मकर राशि घुटने, कुंभ राशि लातें, और मीन राशि पैर से संबंधित हैं ।
पुरूष राशि स्त्री राशि : मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु और कुंभ राशि को पुरूष राशि कहा जाता है । इन्हें odd sign या विषम राशि भी कहते हैं । स्त्री कारक ग्रह जैसे कि चन्द्रमा और शुक्र पुरूष राशि में शुभ होते हैं । इसी प्रकार वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन राशियां स्त्री राशियां हैं । इन्हें even sign या सम राशि भी कहते हैं । पुरूष तत्व ग्रह जैसे कि सूर्य, मंगल, गुरु स्त्री राशियों में शुभता देते हैं ।
चर स्थिर द्विस्वभाव राशियां : मेष, कर्क, तुला और मकर चर राशियां हैं यह ब्रह्मा जी से संबंधित हैं जो कि सृष्टि के रचयिता हैं । इसी लिए चर राशियों को क्रियाशील कहा जाता है कि इन राशि में विराजमान ग्रह की दशा हो तो वह अपनी दशा के दौरान परिवर्तन को दर्शाता है, मानो बुध जो कि धन का कारक ग्रह है वह जन्म कुण्डली में चर राशि मे हो तो निश्चित है वह अपनी दशा में व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में सकारात्मक परिवर्तन करता है । इसी तरह वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशियां स्थिर राशियां हैं जिन का संबंध शिव जी से है जो कि सृष्टि के संहारक हैं, इस लिए जब भी ऐसे ग्रह दशा हो जो कि स्थिर राशि में हो तब जीवन में नकारात्मकता का नाश होता है , और जीवन को स्थाईत्व मिलता है । मानो मंगल या गुरु ग्रह स्थिर राशि मे हो तो बड़ी चीज़ों के प्रयास करने पर सफलता मिलती है जैसे कि घर, वाहन, ज़मीन के सुख, ज्वेलरी खरीदना शुभ होता है । इसी तरह मिथुन, कन्या, धनु और मीन राशियां द्विस्वभाव राशियां हैं । इनका संबंध भगवान विष्णु से है जो कि सृष्टि के पालनहार हैं । इस राशि में विराजमान ग्रह दोनो तरह के फल देता है नकारात्मक भी और सकारात्मक भी । मानो गुरु ग्रह द्विस्वभाव राशि में हो तो 16 वर्ष की महादशा में 8 वर्ष अच्छे तो 8 वर्ष बुरे हो सकते हैं ।
राशियां और तत्व : मेष, सिंह, धनु राशियां अग्नि तत्व प्रधान राशियां हैं । इस लिए इन में विराजमान ग्रह अपने कारक विषयो के अनुसार ज़्यादा बली हो जाता है जैसे कि चन्द्रमा अग्नि तत्व राशि में हो तो ऐसा जातक मन से मज़बूत होता है जल्दी ही परिस्थितियों से घबराता नहीं । वृषभ, कन्या, मकर राशियां पृथ्वी तत्व राशियां हैं । इन में स्थाईत्व होने के कारण ऐसी राशि में विराजमान ग्रह ज़्यादा सुख और सरलता से सफलता देता है जैसे कि राहु और केतु जो कि ध्यान, साधना, मन्त्र , ज्योतिष के कारक हैं इनके पृथ्वी तत्व राशि में होने से ऐसे जातक को इन विषयों में सरलता से सफलता मिल जाती है । मिथुन, तुला और कुंभ वायु तत्व राशियां हैं इस लिए यह राशियां उग्रता देती हैं , जैसे कि मंगल जो क्रोध का कारक है वायु तत्व राशि में होने पर ऐसे जातक का मंगल और प्रबल हो जाता है जिस की वजह से उसका स्वभाव क्रोधी और चिड़चिड़ा हो जाता है और समाज में सब उसको झगड़ालु समझने लगते हैं । कर्क, वृश्चिक और मीन जल तत्व राशियां हैं जैसे कि जल शीतल और निर्मल होता है वैसे ही जल तत्व राशि में विराजमान ग्रह शीतल और शांत हो जाता है जिस से लंबे समय तक कार्य करने की स्मरथा देते हैं, जैसे कि शुक्र जो कि रिसर्च का कारक है जल तत्व राशि में होने पर ऐसा जातक किसी भी तरह के रिसर्च के कार्य कर सकता है, लेकिन शनि या मंगल जल तत्व राशि में होने से जातक सुस्त और आलसी हो जाता है ।
वात पित और कफ राशियां : मेष, सिंह और धनु पित प्रकृति की हैं । वृषभ, कन्या और मकर वात प्रकृति की हैं । कर्क, वृश्चिक और मीन कफ प्रकृति की हैं । मिथुन, तुला और कुंभ राशियां मध्य प्रकृति की हैं ।
दिन और रात्रि बलि राशियां : मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, धनु और मकर राशियां रात्रि के समय बलि होती हैं , जबकि सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, कुंभ और मीन राशियां दिन के समय बलि होती हैं ।
सात्विक राजसिक और तामसिक गुण : मेष, वृषभ, तुला और वृश्चिक राशियां राजसिक प्रधान हैं । कर्क, सिंह, धनु और मीन राशियां सातविक प्रधान हैं । मिथुन, कन्या, मकर और कुंभ राशियां तामसिक प्रधान हैं ।
राशियां और दिशाएँ : मेष, सिंह और धनु राशियां पूर्व दिशा की कारक हैं, यह personality development को दर्शाती हैं । वृषभ, कन्या और मकर राशियां दक्षिण दिशा की कारक हैं , यह कर्म करने को दर्शाती हैं । मिथुन, तुला और कुंभ राशियां पश्चिम दिशा की कारक हैं , यह भोग को दर्शाती हैं । कर्क, वृश्चिक और मीन राशियां उत्तर दिशा की कारक हैं , यह मोक्ष को दर्शाती हैं ।
वर्ण और राशियां : मेष, सिंह और धनु राशियां क्षत्रिय हैं, वृषभ, कन्या और मकर राशियां वैश्य हैं, मिथुन, तुला और कुंभ राशियां शुद्र वर्ण की हैं , जबकि कर्क, वृश्चिक और मीन ब्राह्मण वर्ण से संबंधित हैं ।
राशियां और इनके स्वामी ग्रह : नवग्रहों में राहु और केतु छाया ग्रह हैं इस लिए इन्हें किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है । सूर्य और चन्द्रमा को एक एक राशि का स्वामित्व प्राप्त है , जबकि मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि को 2 - 2 राशियों का स्वामित्व प्राप्त है । सिंह राशि का स्वामी ग्रह सूर्य, कर्क राशि का स्वामी ग्रह चन्द्रमा, मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी ग्रह मंगल, वृषभ और तुला राशि का स्वामी ग्रह शुक्र, मिथुन और कन्या राशि का स्वामी ग्रह बुध , मकर और कुंभ राशि का स्वामी ग्रह शनि , धनु और मीन राशि का स्वामी ग्रह ब्रहस्पति है ।