Lesson 2, Kundli Me Bhav Grah Aur Rashian
पिछली पोस्ट में हम ने चर्चा की थी कि ज्योतिष कैसे कार्य करता है कि कैसे जन्म कुण्डली का फलित आगे वर्ष वर्ष को handover किया जाता है , वर्ष कुण्डली से मासिक कुण्डली को handover और फिर मासिक कुण्डली से दैनिक कुण्डली तक handover किया जाता है इस तरह उस खास दिन में वह घटना फलित हो जाती है । इस के आगे बात करते हैं कि यह चराचर जगत है ज्योतिष अनुसार इस को एक चक्र माना गया है , गणित अनुसार हम सब जानते हैं कि एक चक्र 360 डिग्री का होता है , जिस को 12 बराबर stages में रखा गया है जो कि जीवन के अलग अलग विषयो से संबंधित हैं , इन्ही 12 जीवन की श्रेणीयो को ज्योतिष में 12 राशियां कहा गया है । इस तरह हर राशि 30 डिग्री की होती है , और 12 × 30 = 360 इस तरह जीवन चक्र पूरा होता है । और इन 12 राशियों का स्वामित्व ग्रहो को दिया गया है जिस में सूर्य और चन्द्रमा एक एक राशि में स्वामी हैं, राहु केतु सिर्फ छाया ग्रह हैं इस लिए इन्हें किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है जबकि बाकी के ग्रहो को 2 - 2 राशियों का स्वामित्व प्राप्त है । इस तरह 12 राशियां और 9 ग्रह , 12 × 9 = 108 संख्या प्राप्त होती है । नक्षत्र 27 हैं जिनके 4 चरण ( धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ) , इस तरह 27 × 4 = 108 संख्या प्राप्त होती है जो कि सृष्टि के चलायमान रहने का प्रतीक है । इस तरह ज्योतिष 12 राशियां / भाव, 9 ग्रह , 27 नक्षत्र पर आधारित है इन से बाहर कुछ भी नहीं है ।
जन्म समय के आधार पर लग्न निर्धारण : ज्योतिष में लग्न राशि को विशेष स्थान दिया गया है , यह क्या होता है । आधुनिक सरल भाषा में समझें तो पूरा चक्र 360 डिग्री का होता है जिस में क्रमवार मेष से मीन तक 12 राशियां होती हैं । यह समय चक्र निरंतर चलायमान हैं , जिस तरह एक game खेली जाए जिस में spin खेला जाता है और उस घूमते हुए चक्र पर वह spin फेंका जाता है तो जहां पर वह चक्र रुकने पर spin जिस दिशा या अंक पर होता है वह आपका होता है । इसी तरह चलते हुए इस जीवन चक्र में जिस समय आपका जन्म होता है वह कोई ना कोई अंक होता है 1 से लेकर 360 डिग्री के बीच, जैसे कि 1 से 30 डिग्री के दरमियान जन्मे जातक का लग्न मेष होगा , इसी तरह 31 से 60 डिग्री के दरमियान जन्मे जातक का लग्न वृषभ होगा इस तरह 12 राशियां क्रम अनुसार होती हैं, इस तरह लग्न राशि का चुनाव होता है । लग्न राशि से ही आगे के भाव पर क्रम अनुसार बाकी की राशियां होती हैं जिन में नवग्रहों की स्थिति उस दिन की गोचर कुण्डली के आधार पर होती है । लग्न को ज्योतिष में महत्त्वपूर्ण माना गया है ।
लग्न राशि को कहते हैं प्रथम भाव : जन्म कुण्डली में 12 भाव यानी स्थान / घर / खाने होते हैं , जिन में प्रथम भाव को जन्म कुण्डली का लग्न भाव कहा जाता है । और बाद में क्रम अनुसार बाकी की राशियां बाकी के भावों में आती हैं जैसे कि अगर किसी का सिंह लग्न हो तो प्रथम भाव में सिंह राशि से शुरू करते हुए , द्वितीय भाव में कन्या राशि, इसी तरह क्रम अनुसार चलते हुए 12वे भाव में कर्क राशि को रखा जाता है । और उस दिन जो ग्रहो की स्थितियों होती है जिस राशि में जो ग्रह होता है उसी राशि में वह ग्रह जन्म कुण्डली में आता है , वह राशि जिस भाव में विराजमान होती है उस राशि में विराजमान ग्रह को भी उस भाव से संबंधित मान कर भविष्य से संबंधित फलादेश किया जाता है ।
राशियों के क्रम नहीं बदलते : 12 राशियां क्रम अनुसार : 1, मेष, 2, वृषभ, 3, मिथुन, 4, कर्क, 5, सिंह, 6, कन्या, 7, तुला, 8, वृश्चिक, 9, धनु, 10, मकर, 11, कुंभ और 12, मीन हैं , यह क्रम नहीं बदलता , इसी लिए जन्म कुण्डली में जो कुण्डली होती है वहाँ राशियां नहीं लिखी होती बल्कि सिर्फ अंक लिखे होते हैं , जैसे कि जिस खाना नंबर में 1 लिखा हो वहां मेष राशि समझनी चाहिए, जहाँ 4 नंबर लिखा हो वहां कर्क राशि समझनी चाहिए , और जहां 12 नंबर लिखा हो वहां मीन राशि समझनी चाहिए ।