Lagan Bhav Me Chandrma Ke Fal Aur Upay
यह भाव सूर्य और मंगल से प्रभावित होता है, दोनों ही ग्रह चंद्रमा के मित्र हैं इस नाते यहाँ विराजमान चंद्रमा इन ग्रहों की मदद से शुभता देता है । जैसे कि सूर्य जो कि प्रतिष्ठा का कारक है इस नाते ऐसे जातक को घर में गंगाजल रखना, शरीर पर चांदी धारण करना, घर में चांदी के बर्तनों का इस्तेमाल करना जातक की प्रतिष्ठा और सम्मान की वृद्धि करता है , जबकि यदि ऐसा जातक जल या दूध से जुड़ा कोई व्यवसाय करे तो यह भाग्य और प्रतिष्ठा की हानि करता है । इसी तरह ऐसे जातक को ग्रहस्थ जीवन की शुभता के लिए मंगल की मदद लेनी चाहिए जैसे कि भाइयों के साथ संबंध मधुर रखने चाहिए, घर में शहद ज़रूर रखना चाहिए , और मंगल के प्रबल शत्रु बुध, शुक्र और शनि की चीज़ों से परहेज़ करते हुए हरे, गुलाबी और काले वस्त्रों से परहेज़ करना चाहिए , घर में अविवाहित या विधवा बुआ या बहन, या फिर घर में नोकर रखने से, चेहरे पर फैशियल करवाने से ऐसे जातक का भाग्य खराब होता है । इसी तरह साली के साथ भी ज़्यादा बोलचाल की वजह से जातक का भाग्य खराब होता है । जब शत्रु ग्रहों की वजह से लग्न भाव में विराजमान चंद्रमा खराब हो तो व्यक्ति के कामकाज के साथ साथ उसकी निजी जीवन में भी परेशानी बनी रहती है और जीवन के हर विषय में हर पहलू में संघर्ष बना रहता है । ऐसे जातक की जन्म कुण्डली में सूर्य की स्थिति अच्छी हो तो कामकाज और प्रतिष्ठा के मामले में फल शुभ जानने चाहिए, जबकि सूर्य के खराब होने पर कामकाज और प्रतिष्ठा के फल अशुभ जानने चाहिए । ऐसी जन्म कुण्डली में मंगल की स्थिति अच्छी होने पर निजी जीवन के सुख बेहतर जानने चाहिए, जबकि मंगल की स्थिति खराब होने पर निजी जीवन के सुख भी खराब जानने चाहिए । अन्य पहलू के अनुसार लग्न भाव में विराजमान चंद्रमा पर किसी अन्य ग्रह का दुष्प्रभाव ना हो भले ही सप्तम भाव खाली हो तो ऐसे जातक को 24 वर्ष से पहले विवाह कर लेना चाहिए । जबकि चंद्रमा पर अन्य ग्रहों का दुष्प्रभाव हो और सप्तम भाव में चन्द्रमा के शत्रु ग्रह ( बुध, शुक्र, शनि, राहु, केतु ) हों तो विवाह 28 वर्ष के बाद करना चाहिए । लग्न भाव में विराजमान चंद्रमा पर शत्रु ग्रहों का प्रभाव हो तो सूर्य के अरसे यानी 21 और 22वे वर्ष में शिक्षा और कैरियर के फल मंदे, पिता को आर्थिक नुकसान होते हैं, साथ ही मंगल के अरसे यानी 28 से 32 वर्ष के दरमियान ज़मीन को लेकर झगड़े, चोट दुर्घटना भाई बंधुओं से परेशानी होती है । जबकि लग्न भाव में विराजमान चंद्रमा शुभ प्रभाव में हो तो ऐसे जातक का विवाह 22वे वर्ष में और 28 से 32 वर्ष के दरमियान खुद का घर भी बना लेता है । ऐसे जातक में हर कार्य को लेकर उत्साह और आत्मविश्वास बने रहते हैं जबकि अशुभ चंद्रमा लग्न भाव में हो तो ऐसे जातक को आत्मविश्वास की कमी, अवसाद, हाथों पैरों में कंपन की समस्या अजीब सी बैचेनी और घबराहट हर समय बनी रहती है , ऐसा जातक हृदय रोग से पीड़ित होता है और दूसरों से प्रेम करके कष्ट प्राप्त करता है । लग्न भाव में चंद्रमा खराब है तो जब भी घर में कंस्ट्रक्शन के कार्य होंगे सदस्यों में आपसी झगड़े बढ़ जाते हैं , ऐसे परिवार में खाने को लेकर अक्सर सदस्यों में आपसी झगड़े होते रहते हैं ।
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पहले / लग्न भाव में विराजमान चंद्रमा के उपाये
* घर में चांदी और तांबे के बर्तन रखे और खुद भी यह धातु धारण करें ।
* तांबे का बिना छेद वाला सिक्का लाल धागे में गले में धारण करें ।
* नोकरी / कारोबार की बेहतरी के लिए गुड़ और दलिया मंदिर या गोशाला में दें ।
* गृहस्थ जीवन की बेहतरी के लिए बेड के चारों पाँव पर तांबे की कील लगाएं ।
* अगर चंद्रमा शत्रु राशि में हो तो गुड़, चीनी, शहद, गेहूं का दान गरीब को करें ।