Shukra Ka Pitar Dosh Aur Upay
दोस्तों हमारी आज की इस पोस्ट में चर्चा का विषय है जन्म कुण्डली में शुक्र ग्रह से बनने वाला पितर दोष , व्यक्ति के जीवन में दिखाई देने वाले इसके लक्षण और ऐसे पितर दोष को दूर करने के सरल उपाये । दोस्तों ज्योतिष अनुसार शुक्र को प्रेम संबंधों के सुख का कारक ग्रह, जीवनसाथी के सुख का कारक ग्रह, गाड़ी के सुख का कारक ग्रह, research विषयों में सफलता का कारक ग्रह, आभूषण और रत्नों का कारक ग्रह, व्यवसायक सफलता का कारक ग्रह और शरीर में जननांगों का कारक ग्रह शुक्र है ।
ज्योतिष अनुसार जन्म कुण्डली में पितर दोष से संबंधित भाव 1, 4, 5, 8, 9 तथा 12 हैं । इस तरह जब भी शुक्र की स्थिति किसी की जन्म कुण्डली में 1, 4, 5, 8, 9 और 12 भाव में होकर शत्रु ग्रह जैसे कि चंद्रमा, सूर्य, मंगल और केतु से युति या दृष्टि के माध्यम से पीड़ित हो रहा हो , या फिर जन्म कुण्डली के इन्ही भाव में शुक्र की स्थिति आद्रा, पुष्य, स्वाति, अनुराधा, शतभिषा तथा उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में हो ऐसी ग्रह स्थिति को शुक्र से संबंधित पितर दोष कहा जाता है । पितर दोष की ऐसी ग्रह स्थिति का कारण व्यक्ति के घर परिवार के किसी सदस्य द्वारा गाय को कष्ट देना, घर की स्त्री का अपमान, गर्भवती महिला को कष्ट देना, भ्रूण हत्या, संतान को कष्ट देना , 2 प्रेम करने वालों को जुदा करना या फिर पति पत्नी में गलतफहमी पैदा कर उनके आपसी रिश्ते को खराब करना ऐसे कारण रहे होते हैं । ऐसे धर्म के विपरीत आचरण के कारण वह सदस्य खुद तो नरक यातनाएं भोगते ही हैं , साथ ही अपने कुल परिवार के सदस्यों की भी तरक्की तथा सुख में अवरोध पैदा कर ऐसे ग्रह दोष की शांति करने की और इशारा देते हैं । ऐसे पितर दोष से प्रभावित व्यक्ति के जीवन में कई तरह के लक्षण सामने आते हैं जैसे कि
लग्न भाव में शुक्र की ऐसी बताई गई स्थिति हो तो शरीर में कफ जनित रोग पैदा होते हैं, सर और आंखों से जुड़े रोग परेशान करते हैं, जननांगों से जुड़े रोग परेशान करते हैं, साँझीदारी , प्रेम संबंध , जीवनसाथी से धोखा मिलता है, ऐसा व्यक्ति समाज में लोगों से आसानी से घुल मिल नहीं पाता ।
जबकि चतुर्थ भाव में शुक्र की ऐसी स्थिति हो तो ऐसे व्यक्ति को हृदय से जुड़े रोग, डायबिटीज , शुगर जैसे रोग परेशान करते हैं, माता और जीवनसाथी को स्वास्थ्य कष्ट, संतान प्राप्ति में बाधा, शिक्षा प्राप्ति में बाधा होती है ।
जबकि पंचम भाव में शुक्र की ऐसी स्थिति हो तो व्यक्ति को मनचाही विषय वस्तुओं की प्राप्ति में बाधा आती है, जिस से प्रेम करे वह दूर हो जाता है , तरक्की के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है , संतान प्राप्ति में बाधा आती है , संतान के कैरियर और भविष्य को लेकर परेशानी होती है ।
जबकि अष्टम भाव में शुक्र की ऐसी स्थिति हो ऐसे व्यक्ति को पारिवारिक सदस्यों की वजह से कष्ट होते हैं, विशेष कर बुजुर्गों की तरफ से सुख नहीं मिलता , ऐसे व्यक्ति को आंखों से जुड़े रोग , मूत्र अंगों से जुड़े रोग होते हैं, ऐसे व्यक्ति में वाणी दोष होता है जिसकी वजह से उसके मित्र आसानी से नहीं बनते , ना ही वाणी की वजह से नोकरी व्यवसाय में तरक्की होती है ।
जबकि नवम भाव में शुक्र की ऐसी स्थिति हो तो ऐसे व्यक्ति को आजीविका का सही साधन जीवन में नहीं मिल पाता, ऐसा व्यक्ति का धन बार बार अटकता है, ऐसे व्यक्ति को पेट तथा मूत्र अंगों से जुड़े रोग होते हैं , ऐसे व्यक्ति के पिता को पेट से जुड़े रोग होते है ।
जबकि बाहरवें भाव में शुक्र की ऐसी स्थिति हो ऐसा व्यक्ति घर गृहस्थी से दूर रहता है, अनावश्यक यात्राएं , साधु या बाबा के रूप में आचरण करने वाला , या फिर किसी समाज सेवा करने वाली संस्था के साथ जुड़ा होता है , धन तो बहुत रहता है लेकिन सुख की प्राप्ति नहीं होती ।
अब बात उपायों की करें तो यह सब लक्षण जीवन में होने पर ऐसे व्यक्ति को वर्ष में 100 गायों की सेवा करनी चाहिए, बीमार गायों की चिकित्सा हेतु आर्थिक मदद करनी चाहिए, महिलाओं का आदर सम्मान करना चाहिए , किसी गरीब कन्या का विवाह करवाने में आर्थिक योगदान देना चाहिए, महीने में एक शुक्रवार किसी अच्छी retro / ढाबे पर परिवार के साथ भोजन करना चाहिए , हमेशा साफ और घुले वस्त्र धारण करने चाहिए, शुक्रवार के दिन शिवलिंग पर दहीं अर्पित करना चाहिए, शुक्रवार के दिन जल में दूध मिला कर स्नान करना चाहिए , शुक्रवार के दिन घी, चावल, चीनी, दूध , बताशे का दान मंदिर में करना चाहिए ।