Guru Ka Pitar Dosh Aur Upay
दोस्तों हमारी आज की इस पोस्ट में चर्चा का विषय है जन्म कुण्डली में ब्रहस्पति ग्रह से बनने वाला पितर दोष , व्यक्ति के जीवन में दिखाई देने वाले इसके लक्षण और ऐसे पितर दोष को दूर करने के सरल उपाये । दोस्तों ज्योतिष अनुसार ब्रहस्पति को शिक्षा प्राप्ति का कारक ग्रह , व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा का कारक ग्रह , गुरुजनों के सुख का कारक ग्रह , ग्रहस्थ सुख तथा कफ नियंत्रित कारक ग्रह है ।
ज्योतिष अनुसार जन्म कुण्डली में पितर दोष से संबंधित भाव 1, 4, 5, 8, 9 तथा 12 हैं । इस तरह जब भी ब्रहस्पति की स्थिति किसी की जन्म कुण्डली में 1, 4, 5, 8, 9 और 12 भाव में होकर शत्रु ग्रह जैसे कि शनि या राहु से युति या दृष्टि के माध्यम से पीड़ित हो रहा हो , या फिर जन्म कुण्डली के इन्ही भाव में सूर्य की स्थिति आद्रा, पुष्य, स्वाति, अनुराधा, शतभिषा तथा उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में हो ऐसी ग्रह स्थिति को ब्रहस्पति से संबंधित पितर दोष कहा जाता है । पितर दोष की ऐसी ग्रह स्थिति का कारण व्यक्ति के पिता या दादा का गलत आचरण या फिर पिता की तरफ से 7 पीढ़ियों में से किसी पुरूष ने पीपल के पेड़ को नष्ट किया हो , किसी ब्राह्मण का अपमान किया हो , गाय को कष्ट दिया हो या फिर धर्म स्थल को नष्ट किया हो , ऐसे धर्म के विपरीत आचरण के कारण वह खुद को नरक यातनाएं भोगते ही हैं , साथ ही अपने कुल परिवार के सदस्यों की भी तरक्की तथा सुख में अवरोध पैदा कर ऐसे ग्रह दोष की शांति करने को और इशारा देते हैं । ऐसे पितर दोष से प्रभावित व्यक्ति के जीवन में कई तरह के लक्षण सामने आते हैं
जैसे कि लग्न भाव में ब्रहस्पति की ऐसी बताई गई स्थिति हो तो शरीर में कफ जनित रोग पैदा होते हैं, घर में बार बार पीपल का पेड़ उगता है, ऐसे व्यक्ति का वजन बहुत जल्दी बढ़ता है, ऐसा व्यक्ति आसान रास्तों के माध्यम से शोहरत हासिल करने का इच्छुक होता है , ऐसे व्यक्ति का मस्तक 4 अंगुल से बड़ा होता है ।
जबकि चतुर्थ भाव में ब्रहस्पति की ऐसी स्थिति हो तो ऐसे व्यक्ति के बुजुर्गों को हृदय और पेट संबंधी रोग होते हैं , ऐसा व्यक्ति खुद को ज़्यादा भोजन करता है, जिसकी वजह से डायबिटीज , शुगर जैसे रोग से पीड़ित होता है , हमेशा ही धन संपदा से असंतुष्ट ही रहता है , भोजन के साथ मसालों का अलग से प्रयोग करता है , ऐसा व्यक्ति कम पढ़ा लिखा लेकिन काम काज में निपुण होता है , बेवजह दूसरों को ज्ञान देने की आदत होती है ।
जबकि पंचम भाव में ब्रहस्पति की ऐसी स्थिति हो तो व्यक्ति को मनचाही विषय वस्तुओं की प्राप्ति में बाधा आती है, जिस से प्रेम करे वह दूर हो जाता है , तरक्की के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है , संतान प्राप्ति में बाधा आती है ।
जबकि अष्टम भाव में ब्रहस्पति की ऐसी स्थिति हो ऐसे व्यक्ति को पारिवारिक सदस्यों की वजह से कष्ट होते हैं, विशेष कर बुजुर्गों की तरफ से सुख नहीं मिलता , ऐसे व्यक्ति को आंखों से जुड़े रोग , मूत्र अंगों से जुड़े रोग होते हैं, ऐसे व्यक्ति में वाणी दोष होता है जिसकी वजह से उसके मित्र आसानी से नहीं बनते , ना ही वाणी की वजह से नोकरी व्यवसाय में तरक्की होती है ।
जबकि नवम भाव में ब्रहस्पति की ऐसी स्थिति हो तो ऐसे व्यक्ति को आजीविका का सही साधन जीवन में नहीं मिल पाता, ऐसा व्यक्ति का धन बार बार अटकता है, ऐसे व्यक्ति को पेट तथा मूत्र अंगों से जुड़े रोग होते हैं , ऐसे व्यक्ति के पिता को पेट से जुड़े रोग होते है ।
जबकि बाहरवें भाव में ब्रहस्पति की ऐसी स्थिति हो ऐसा व्यक्ति घर गृहस्थी से दूर रहता है, अनावश्यक यात्राएं , साधु या बाबा के रूप में आचरण करने वाला , या फिर किसी समाज सेवा करने वाली संस्था के साथ जुड़ा होता है , धन तो बहुत रहता है लेकिन सुख की प्राप्ति नहीं होती । ऐसे व्यक्ति के घर का कोई बुजुर्ग अचानक ही बिना बताए घर से चला जाता है ।
अब बात उपायों की करें तो यह सब लक्षण जीवन में होने पर ऐसे व्यक्ति को जीवन भर गुरुवार के दिन नियम से चाहे गोशाला में सेवा करें , चाहे धर्मस्थल में सेवा करें । ऐसे व्यक्ति को गुरुवार के व्रत करने चाहिए , वर्ष में कम से कम 4 पीपल के पेड़ लगाने चाहिए । गुरुवार के दिन पीले चने की दाल, चीनी, हल्दी तथा पीले वस्त्र का दान करना चाहिए ।