Shani Ka Pitar Dosh Aur Upay
दोस्तों हमारी आज की इस पोस्ट में चर्चा का विषय है जन्म कुण्डली में शनि ग्रह से बनने वाला पितर दोष , व्यक्ति के जीवन में दिखाई देने वाले इसके लक्षण और ऐसे पितर दोष को दूर करने के सरल उपाये । दोस्तों ज्योतिष अनुसार शनि को सेवक, नोकर, मिलने वाली सुविधाएं, जीवन में अनुशासन, मेहनत, कार्य कुशलता, न्याय, दुख , वैराग्य, ज़मीन, मशीनरी और तकनीकी ज्ञान का कारक, घुटने, हैसियत में हमारे से छोटे लोगों का कारक शनि है । इस के इलावा नाड़ी ज्योतिष अनुसार बड़े भाई के सुख का कारक भी शनि है ।
जन्म कुण्डली में पितर दोष के लक्षण : ज्योतिष अनुसार जन्म कुण्डली में पितर दोष से संबंधित भाव 1, 4, 5, 8, 9 तथा 12 हैं । इस तरह जब भी शनि की स्थिति किसी की जन्म कुण्डली में 1, 4, 5, 8, 9 और 12 भाव में होकर शत्रु ग्रह जैसे कि चंद्रमा, सूर्य, मंगल, ब्रहस्पति और केतु से युति या दृष्टि के माध्यम से पीड़ित हो रहा हो , या फिर जन्म कुण्डली के इन्ही भाव में शनि की स्थिति आद्रा, पुष्य, स्वाति, अनुराधा, शतभिषा तथा उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में हो ऐसी ग्रह स्थिति को शनि से संबंधित पितर दोष कहा जाता है । पितर दोष की ऐसी ग्रह स्थिति का कारण व्यक्ति के घर परिवार के किसी सदस्य द्वारा किसी की ज़मीन पर नाजायज़ कब्ज़ा करना, अपने से छोटे और असहाय को कष्ट देना, किसी की आजीविका के साधन को नष्ट करना, किसी का धन रखना, किसी के विरुद्ध झूठी गवाही देना, किसी के बनते हुए कार्य को खराब करना, घर परिवार के प्रति ज़िम्मेदारी को ना उठाना इस तरह के कारण रहे होते हैं, जिसकी वजह से वह सदस्य खुद तो नरक यातनाएं भोगते ही हैं, साथ ही अपने कुल परिवार के सदस्यों की भी तरक्की तथा सुख में अवरोध पैदा कर ऐसे ग्रह दोष की शांति करने की और इशारा देते हैं । ऐसे पितर दोष से प्रभावित व्यक्ति के जीवन में कई तरह के लक्षण सामने आते हैं , जैसे कि
लग्न भाव में शनि की ऐसी बताई गई स्थिति हो तो शरीर में पित जनित रोग पैदा होते हैं, पेट, सर और आंखों से जुड़े रोग परेशान करते हैं, जननांगों से जुड़े रोग परेशान करते हैं, साँझीदारी , प्रेम संबंध , जीवनसाथी से धोखा मिलता है, ऐसा व्यक्ति समाज में लोगों से आसानी से घुल मिल नहीं पाता, अकेले खुद से कोई कार्य करने का आत्मविश्वास नहीं बन पाता, 36 वर्ष तक जीवन में संघर्ष होता है ।
जबकि चतुर्थ भाव में शनि की ऐसी स्थिति हो तो ऐसे व्यक्ति को हृदय से जुड़े रोग, शिक्षा प्राप्ति में बाधा, हर समय सोच विचार में लगे रहना, मन की चंचलता, , माता और जीवनसाथी को स्वास्थ्य कष्ट, संतान प्राप्ति में बाधा होती है ।
जबकि पंचम भाव में शनि की ऐसी स्थिति हो तो व्यक्ति को मनचाही विषय वस्तुओं की प्राप्ति में बाधा आती है, जिस से प्रेम करे वह दूर हो जाता है , तरक्की के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है , संतान प्राप्ति में बाधा आती है , संतान के कैरियर और भविष्य को लेकर परेशानी होती है ।
जबकि अष्टम भाव में शनि की ऐसी स्थिति हो ऐसे व्यक्ति को पारिवारिक सदस्यों की वजह से कष्ट होते हैं, विशेष कर बुजुर्गों की तरफ से सुख नहीं मिलता , ऐसे व्यक्ति को आंखों से जुड़े रोग , मूत्र अंगों से जुड़े रोग होते हैं, ऐसे व्यक्ति में वाणी दोष होता है जिसकी वजह से उसके मित्र आसानी से नहीं बनते , ना ही वाणी की वजह से नोकरी व्यवसाय में तरक्की होती है ।
जबकि नवम भाव में शनि की ऐसी स्थिति हो तो ऐसे व्यक्ति को आजीविका का सही साधन जीवन में नहीं मिल पाता, ऐसा व्यक्ति का धन बार बार अटकता है, ऐसे व्यक्ति को पेट तथा मूत्र अंगों से जुड़े रोग होते हैं , ऐसे व्यक्ति के पिता को पेट से जुड़े रोग होते है ।
जबकि बाहरवें भाव में शनि की ऐसी स्थिति हो तो प्रॉपर्टी से जुड़े झगड़े ऐसे व्यक्ति को परेशान करते हैं, खुद का घर बनाने में बाधा आती है और घर बनाने के बाद भी जीवन में समस्या बढ़ जाती है, पिता और बड़े भाई की तरफ से परेशानी होती है, विवाह में देरी और ग्रहस्थ जीवन में भी परेशानी होती है ।
अब बात उपायों की करें तो यह सब लक्षण जीवन में होने पर ऐसे व्यक्ति को प्रष्चित के तौर पर घर परिवार की ज़िम्मेदारी उठानी चाहिए, इस में बड़े या छोटे भाई या फिर बुआ या चाचा / ताऊ के परिवार की ज़िम्मेदारी उठाना भी शामिल हो सकता है, जीवन के 48 वर्ष तक उनके दुख तकलीफ में हर संभव सहायता देनी चाहिए , इस के इलावा 48 वर्ष तक खुद के नाम पर ज़मीन कभी नहीं खरीदनी चाहिए नहीं तो उस ज़मीन के चलते आपका भाग्य खराब होगा जीवन में तरक्की कभी नहीं होगी, नियम से हर गुरुवार किसी भी रूप में साफ सफाई के कार्य करें, महीने में एक शनिवार को किसी रोगी व्यक्ति की दवा का खर्च उठाना चाहिए, शनिवार के दिन सरसों का तेल मिट्टी के बर्तन में लेकर उसको ढककर किसी नदी नहर के पास दबा देने से भी शनि के दुष्प्रभाव दृर होते हैं , इस के इलावा यदि पूजा पाठ में आपका मन लगता है तो शनिवार के दिन हनुमान चालीसा या सुंदरकांड का पाठ करें ।