Lesson 7 - Navgraho Me Mitrta aur Shatruta
नैसर्गिक मित्रता और शत्रुता संबंध
सूर्य : मंगल, बुध, गुरु से मित्रता, चंद्रमा से सामान्य , शुक्र, शनि से शत्रुता
चन्द्रमा : बुध, शुक्र से मित्रता, सूर्य, मंगल, गुरु, शनि से सामान्य
मंगल : सूर्य, चन्द्र, गुरु से मित्रता, बुध, शनि से सामान्य, शुक्र से शत्रुता
बुध : सूर्य, शुक्र से मित्रता, चंद्रमा, मंगल, गुरु, शनि से सामान्य
गुरु : सूर्य, मंगल से मित्रता, चंद्रमा, शुक्र, शनि से सामान्य, बुध से शत्रुता
शुक्र : बुध, शनि से मित्रता, मंगल, चंद्रमा, गुरु से सामान्य, सूर्य से शत्रुता
शनि : बुध, शुक्र से मित्रता, चंद्रमा, गुरु से सामान्य, सूर्य, मंगल से शत्रुता
तात्कालिक मित्रता और शत्रुता संबंध
लग्न कुण्डली में ग्रहो की भाव स्थिति के अनुसार हर ग्रह अपने से 3 स्थान आगे और 3 स्थान पीछे विराजमान ग्रह से मित्रता रखता है, जबकि इस के इलावा बाकी भावो में विराजमान ग्रहो से शत्रुत्व संबंध रखता है । एक ही भाव में विराजमान ग्रह भी आपस में शत्रुत्व भाव रखते हैं । भले ही नैसर्गिक मित्र ग्रह जैसे कि बुध और शुक्र एक ही भाव में विराजमान हो तो भी वह एक दूसरे की दशा में शत्रुता रखते हुए अशुभ परिणाम देंगे ।
पंच्या मैत्री संबंध
इस तरह नैसर्गिक मैत्री और तात्कालिक मैत्री के आधार पर पंच्या मैत्री का चार्ट बनाया जाता है । जैसे कि अगर कोई ग्रह नैसर्गिक शत्रु हो जैसे कि सूर्य और शनि, और तात्कालिक मैत्री में भी वह एक ही भाव में हो या 5, 6, 7, 8, 9वे भाव में हो वह उस में भी शत्रु माने जाने से, पंच्या मैत्री में शत्रु + शत्रु = अधिशत्रु होकर एक दूसरे की महादशा में अशुभ फल देते हैं । जबकि यदि सूर्य शनि से 3 भाव आगे या पीछे हो तो तात्कालिक मैत्री में इनकी मित्रता होने से , यह शत्रु + मित्र = सामान्य होकर एक दूसरे की दशा में अशुभ फल ना देते हुए सामान्य फल देंगे । इसी तरह अन्य ग्रहो का विचार करना चाहिए ।