Lesson 36 - Kundli Me Bhautik Sukh Prapti Yog
हर किसी की इच्छा होती है कि उसको पूर्ण रूप से भौतिक सुख जीवन में प्राप्त हों, खास कर जब आसानी से कर्ज़ मिल जाते हैं तो हर कोई खुद के लिए बेहतर घर, बड़ी गाड़ी, महंगे वस्त्र, भोजन तथा खुद के कमरे में ए सी चाहता है । इस तरह के भौतिक सुख प्राप्ति में भी ज्योतिष हमारी मदद करता है, खास करके शुक्र ग्रह को भौतिक सुख देने वाला ग्रह माना जाता है, इस लिए जिसकी जन्म कुण्डली में शुक्र ग्रह अच्छा हो उसकी जिंदगी में उसको भौतिक सुख प्राप्त होते हैं । और जिसकी जन्म कुण्डली में शुक्र ग्रह खराब फल दे रहा हो उसको सुख प्राप्ति में बाधा आती है । तो इस पोस्ट में जीवन में भौतिक साधनों की प्राप्ति और उनसे सुख के विषय पर चर्चा का प्रयास करते हैं :
चतुर्थ भाव है सुख स्थान : जन्म कुण्डली के 12 भावों में से 4th भाव को सुख स्थान कहा जाता है, इस लिए जिसकी जन्म लग्न कुण्डली में चतुर्थ भाव में क्रूर और पापी ग्रह ( सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु ) हो तो उसको भौतिक सुख प्राप्ति से संबंधित समस्या आती है, ऐसे जातक अपने घर और प्राप्त होने वाले वाहनों से खुश नहीं होते । अगर चतुर्थ भाव का स्वामी मंगल, शनि, राहु, केतु के नक्षत्र में हो तो घर और वाहन खरीदने के बाद इन्हें धन और भाग्य से संबंधित परेशानी आने लगती है । अगर चतुर्थ भाव का स्वामी 3, 8, 10, 12 में हो तो भी ज़मीन और वाहनों से संबंधित सुख की कमी का अनुभव होता है । जबकि चतुर्थ भाव में शुभ ग्रह ( चन्द्रमा, बुध, गुरु, शुक्र ) हो तो ऐसे व्यक्ति को ज़मीन और वाहनों का पूर्ण सुख मिलता है । जबकि बुध ग्रह जिस ग्रह की दृष्टि में हो , जिस राशि में हो उसी अनुसार गुण धारण करते हुए फल प्रदान करता है ।
भवात भवम संबंध देखना : ज्योतिष का यह महत्वपूर्ण सूत्र है कि किसी भी भाव से संबंधित फल का विचार करते हुए भवात भवम सूत्र को भी उपयोग में लाना चाहिए , इस अनुसार यदि हम चतुर्थ भाव का विचार कर रहे हैं तो चतुर्थ से चतुर्थ यानी जन्म कुण्डली के सप्तम भाव का भी विचार करना चाहिए , कि सप्तम भाव में कोनसे ग्रह हैं और यह भाव क्या दर्शा रहा है । सप्तम भाव में भी विराजमान क्रूर और पापी ग्रह भौतिक सुख प्राप्ति में बाधा बनते हैं । इस तरह चतुर्थ और सप्तम भाव दोनो की स्थिति को जान कर दोनो भावो की शुभता के लिए उपाये करने चाहिए ।
कारक ग्रह हैं महत्वपूर्ण : ज्योतिष में कारक ग्रहों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है क्योंकि कारक ग्रहों के बिना किसी भी भाव के संबंधित फल प्राप्ति संभव नहीं होती , इस लिए कारक ग्रहों की शूभता और मज़बूती पर भी ध्यान देना चाहिए । बात करें चतुर्थ भाव की तो ज्योतिष अनुसार चतुर्थ भाव का कारक ग्रह चंद्रमा है , इस लिए चन्द्रमा की स्थिति को देखना चाहिए , कि चंद्रमा मित्र राशि का हो और 3, 6, 8, 10, 11, 12वे भाव में ना हो । और ना ही चंद्रमा पर शनि, राहु, केतु का दृष्टि प्रभाव हो ना ही इन ग्रहों से युति हो , तभी चंद्रमा को बलि माना जाता है , अगर चंद्रमा अशुभ भाव या शनि, राहु, केतु से पीड़ित है तो इसकी शुभ स्थिति के लिए उपाये करने चाहिए । इस के इलावा जैमिनी ज्योतिष अनुसार मातृ कारक ग्रह को जानकर उसकी शुभ अशुभता का विचार किया जाता है , इस ग्रह की अंतरदशा में भी भौतिक सुख साधनों की प्राप्ति होती है ।
दशा और गोचर विचार : महादशा और अंतरदशा ऐसे ग्रहो की हो जो कि जन्म लग्न कुण्डली के 4, 9, 11वे भावो से संबंधित हो और बृहस्पति शनि का गोचर भी इन्ही भावों पर या स्वामी ग्रहों से संबंधित हो तभी उस समय में सुख साधनों की प्राप्ति के योग होते हैं । माने महादशा का ग्रह 11वे भाव में हो या इसकी राशि का स्वामी हो, और अंतरदशा का ग्रह 4th भाव का स्वामी हो और 9th भाव में हो या 9th का स्वामी हो और चतुर्थ भाव में हो इस तरह यह ग्रह 4, 9, 11वे भाव से संबंधित होंगे , इस लिए इन ग्रहो की दशा समय में सुख साधनों की प्राप्ति, ज़मीन से जुड़े कार्य, वाहन प्राप्ति के योग होते हैं । जबकि अगर आप ज़मीन से जुड़े कार्यो के लिए प्रयास कर रहे हैं घर खरीदने की तलाश में है और दशा अंतरदशा 3, 8, 10, 12वे भाव से संबंधित है तो आपके प्रयास सफल नहीं होंगे, कार्यो में रुकावट आएगी, जबकि अगर ज़मीन / घर बेचना हो तो दशा अंतरदशा का संबंध जन्म लग्न कुण्डली के 3, 5, 10, 12वे से होना चाहिए ।