Lesson 30 - Kundli Se Jaane Vyavhaar Aur Achran
ज्योतिष अनुसार किसी की जन्म कुण्डली देख कर उसके व्यवहार , आदतें एवं आचरण के बारे में भी जाना जा सकता है । खास कर यह बात तब महत्वपूर्ण हो जाती है जब किसी कन्या के लिए वर की तलाश की जाती है तो उनको चाहिए कि कुण्डली मिलान से पहले किसी ज्योतिषी को उस लड़के की जन्म कुण्डली दिखा कर लड़के के आचरण एवं व्यवहार के बारे में ज़रूर जान लेना चाहिए , नहीं तो बहुत बार ऐसा होता है कि विवाह से पहले लड़के के परिवार वालो की तरफ से जो कुछ बताया जाता है वह कई बार सही नहीं होता और फिर लड़के का खान पान, आदतें, आचरण एवं गलत व्यवहार की वजह से लड़की को परेशानी उठानी पड़ती है । इस पोस्ट में इसी बात पर चर्चा करते हैं :
लग्न भाव है महत्वपूर्ण : जन्म कुण्डली में लग्न भाव यानी प्रथम भाव को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है इस से काफी हद तक व्यक्ति का आचरण, उसकी कार्यशैली, सोच और समझ जुड़ी होती है । लग्न भाव में विराजमान ग्रह की प्रकृति अनुसार हम किसी के स्वभाव को 3 तरह से समझ सकते हैं : #लग्न_भाव में विराजमान क्रूर ग्रह ( सूर्य / मंगल ) : ऐसा जातक स्वभाव से खुले विचारों वाला होता है यह कुछ भी बोलने , करने में किसी अन्य की परवाह नहीं करते , यह जो भी करते हैं बेबाक अंदाज़ से करते हैं । #लग्न_भाव में विराजमान शुभ ग्रह ( चन्द्रमा, गुरु, शुक्र ) : ऐसा जातक व्यवहार से सौम्य एवं शांत होता है तथा हमेशा कुछ भी बोलने एवं करने से पूर्व दूसरों का ख्याल रखते हैं , किसी को कष्ट देना इनके व्यवहार में नहीं होता । #लग्न_भाव में विराजमान पापी ग्रह ( शनि, राहु, केतु ) : ऐसा जातक व्यवहार से अशांत होता है, हमेशा ही इनकी सूरत से लगता है कि यह दुखी हैं, दूसरों से ईर्ष्या करना, निंदा करना, झूठ और कपट करना इनके व्यवहार में शामिल होता है । जबकि बुध ग्रह की स्थिति लग्न भाव में हो तो बुध ग्रह जिस राशि में हो उसी के स्वामी ग्रह अनुसार व्यवहार करता है, शुभ ग्रह की राशि में विराजमान बुध जातक को व्यवहार से अच्छा और मिलनसार बनाता है ।
द्वितीय भाव है गुणों की खान : द्वितीय भाव वाणी का भाव है , कहते हैं जब किसी की ज़ुबान खुलती है तभी पता चलता है कि यह खान सोने की है या कोयले की , इस के साथ ही द्वितीय भाव आहार से भी संबंधित होता है । इसी लिए ज्योतिष में बताया गया है कि यदि द्वितीय भाव पर क्रूर एवं पापी ग्रहों का प्रभाव हो तो ऐसा जातक मास मदिरा का सेवन करता है , घर की बजाए बाहर के चटपटे खाने पसंद करता है ,वाणी से भी दूसरों को कष्ट देता है । खास कर यदि द्वितीय भाव में सूर्य पाप पीड़ित हो तो ऐसा जातक ड्रग्स का आदि होता है, द्वितीय भाव में चन्द्रमा पाप पीड़ित हो तो ऐसा जातक शराब पीने का आदि, मंगल पाप पीड़ित द्वितीय भाव में हो तो जातक मास मदिरा का सेवन करने वाला, बुध पाप पीड़ित द्वितीय भाव में हो तो जातक कोकीन का सेवन करने वाला, शनि / राहु द्वितीय भाव से संबंधित हो अन्य पापी ग्रह का संबंध बने तो ऐसा जातक धूम्रपान करने का आदि होता है , केतु द्वितीय भाव में अन्य पापी ग्रहों की दृष्टि में हो तो ऐसा जातक इंजेक्शन द्वारा ड्रग्स लेने का आदि होता है । इस तरह द्वितीय भाव को देख कर बहुत कुछ जाना जा सकता है ।
अष्टम भाव से बनने वाले संबंध : जन्म कुण्डली के अष्टम भाव का संबंध गुप्त क्रियायों से होता है । सूर्य अष्टम भाव में पाप पीड़ित हो तो यह जातक में आत्मबल की कमी के चलते उसको गलत रास्तों पर ले जाता है, चन्द्रमा से मन में वहम की समस्या, मंगल / केतु से बेवजह ही दुर्घटना का भय, बुध से तांत्रिक क्रियाओं में रुचि के चलते नुकसान , ब्रहस्पति से रिश्तों में विश्वास की कमी, शुक्र से शरीर में हार्मोन्स से संबंधित समस्या, शनि / राहु से टोने टोटके का भय होता है ।
लग्नेश एवं आत्मकारक ग्रह हैं महत्वपूर्ण : अगर जन्म कुण्डली में लग्न भाव में पापी ग्रह हो लेकिन लग्नेश बलि होकर विराजमान हो शुभ स्थान पर तो भी ऐसा जातक व्यवहार से दूसरों को सुख देने वाला होता है, जबकि लग्नेश और अष्टमेश में राशि परिवर्तन शुभ नहीं होता । किसी की भी जन्म कुण्डली में अगर सूर्य और चन्द्रमा शुभ हैं पाप पीड़ित नहीं है तो भी ऐसा जातक अच्छी व्यवहारिकता वाला होता है , इस के इलावा जैमिनी ज्योतिष अनुसार आत्मकारक ग्रह को जानकर उसकी शुभ स्थिति का भी विचार कर लेना जरूरी होता है ।