Lesson 26 - Jyotish Me Dasha Ke Prakar
ज्योतिष में जन्म कुण्डली देखने के लिए विभिन्न प्रकार की दशा का उपयोग भी किया जाता है जिन से फलादेश करने में सटीकता आती है, क्योंकि अलग अलग तरह की दशाएं एक ही तरह के घटनाक्रम को जब दर्शाए तो ही उस घटना से संबंधित शुभ - अशुभ फल प्राप्त होते हैं । मुख्य रूप से विमशोत्री दशा , अष्टोत्तरी दशा, कालचक्र दशा एवं योगिनी दशा का प्रचलन आज के समय में है । इस के इलावा कुछ अन्य विशेष दशाएँ भी प्रचलन में हैं जैसे कि सुख साधनों के लिए सुदशा , आध्यात्मिक कार्यो के लिए दृग्दशा एवं दुर्भाग्य, बीमारी, दुर्घटना, मृत्यु के लिए शूल दशा का उपयोग किया जाता है । लाल किताब में 35 वर्ष चक्र दशा का उपयोग किया जाता है ।
विमशोत्री_दशा : खास कर कलियुग के इस समय में किसी भी कुण्डली पर इस दशा को लगाया जा सकता है , इस लिए आज के समय में हर किसी की जन्म कुण्डली में इस दशा का उपयोग किया जाता है, जिस से सामान्य जीवन के शुभ - अशुभ फल का निर्धारण हो जाता है कि कब किसी के लिए समय अनुकूल है और कब समय विपरीत चल रहा है । जीवन के किसी भी विषय से संबंधित शुभ - अशुभ फलादेश इस दशा के माध्यम से किये जाते हैं ।
अष्टोत्तरी_दशा : विमशोत्री दशा चक्र के बाद दूसरी महत्वपूर्ण दशा है अष्टोत्तरी दशा चक्र, यह दशा चक्र विमशोत्री दशा के समान ही फलादेश करने में सक्षम है । जीवन के सभी तरह के विषय से संबंधित शुभ - अशुभ फलादेश इस दशा चक्र के माध्यम से भी किये जाते हैं , इस दशा को किसी भी जन्म कुण्डली पर लगाने के कारण इस प्रकार बताये गए हैं : अगर जातक का जन्म शुक्ल पक्ष के दिनों में दिन के समय का हो या फिर कृष्ण पक्ष के दिनों में रात्रि के समय का हो तो उस जातक की जन्म कुण्डली से संबंधित फलादेश करने के लिए अष्टोत्तरी दशा का उपयोग किया जाता है ।
कालचक्र दशा : पराशरी ज्योतिष यानी वैदिक ज्योतिष में विमशोत्री तथा अष्टोत्तरी दशा का उपयोग किया जाता है । जबकि जैमिनी ज्योतिष में कालचक्र दशा का उपयोग किया जाता है । इस दशा को जैमिनी चरा दशा या राशि क्रम दशा भी कहा जाता है जिस में नवग्रहों की बजाए दशा राशियों के नाम पर जैसे कि मेष राशि महादशा , वृषभ राशि महादशा इस तरह 12 राशि एवं उनमें राशियों के ही अंतरदशा क्रम अनुसार चलते हैं । इस तरह वर्तमान में चल रही किसी पर राशि दशा की शुभ - अशुभता का निर्धारण उस राशि को देखने वाले ग्रहो की शुभ - अशुभता पर निर्भर करता है , जैसे कि नैसर्गिक अशुभ ग्रह ( मंगल, शनि, राहु, केतु ) किसी राशि पर दृष्टि दे रहे हो तो उस राशि की दशा अशुभ फल देती है , जबकि शुभ ग्रहों के दृष्टि प्रभाव में होने वाली राशि की दशा शुभ फल दशा के दौरान देती है ।
सुदशा : इस दशा का उपयोग भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति के लिए किया जाता है , जैसे कि अगर कोई घर खरीदना चाहता, कोई वाहन खरीदना चाहता हो , स्त्री सुख प्राप्ति जैसे विषयों में सफलता एवं असफलता का विचार इस दशा से किया जाता है ।
दृग्दशा : इस दशा का उपयोग कुछ खास कार्य जैसे कि किसी की आध्यात्मिक तरक्की , कार्य सिद्धि , मन्त्र सिद्धि में सफलता के लिए विचार इस दशा चक्र से किया जाता है । जैसे कि अगर कोई आध्यात्मिक विषयो से जुड़ा हो, ज्ञान प्राप्ति की इच्छा रखता हो , विशेष फल प्राप्ति के लिए पूजा पाठ में लगा हुआ हो तो उस में सफलता या असफलता का विचार इस दशा से किया जाता है ।
शूल_दशा : इस दशा का उपयोग कुछ खास स्थिति जैसे कि अगर किसी पर समय सही ना चल रहा हो, कोई किसी गम्भीर बीमारी से पीड़ित हो, या फिर कोई धन से कष्ट में हो या फिर किसी पर विमशोत्री दशा अनुसार मारक ग्रह की महादशा चल रही हो तो इस दशा का उपयोग किया जाता है । शूल दशा से किसी के दुर्भाग्य, अशुभ फल , रोग से पीड़ित या उस से बचाव आदि का विचार किया जाता है ।