Lesson 18 - Janam Kundli Se Kaise Kre Faladesh
ज्योतिष से जुड़ी प्रारम्भिक जानकारी, लग्न अनुसार शुभ - अशुभ भाव , राशि एवं ग्रह , नवग्रहों की उच्च व नीच राशि, शत्रु व मित्रता विचार , अलग अलग तरह की वर्ग कुण्डली, ग्रहों के बल व अष्टकवर्ग से जुड़ी जानकारी पोस्ट कर दी गई है अब तक की गई पोस्ट में । इस पोस्ट में जन्म कुण्डली के विश्लेषण संबंधी चर्चा करते हैं कि कैसे 12 भाव, राशि उनके स्वामी ग्रहों के आधार पर फलादेश प्राप्त किये जाते हैं :
किसी भी विषय संबंधी विचार को सब से पहले लग्न कुण्डली से देखना चाहिए कि हमें जिस विषय वस्तु का विचार करना है वह लग्न कुण्डली के कोनसे भाव एवं कोनसे कारक ग्रह से संबंधित है , भाव में आने वाली राशि के आधार पर उस के स्वामी ग्रह को जान कर उस ग्रह की स्थिति जन्म कुण्डली में देखनी चाहिए , कारक ग्रह की स्थिति का विचार भी करना चाहिए । इस तरह जो परिणाम प्राप्त हो उसको नोटबुक पर लिख लेना चाहिए ।
इस के बाद लग्न बदल कर विचार करना चाहिए जैसे कि चन्द्र कुण्डली एवं सूर्य कुण्डली , पक्का लग्न ( जिस राशि में स्वामी ग्रह हो उसको लग्न मान कर ) , करकामन्श लग्न ( आत्मकारक ग्रह जिस राशि में विराजमान हो उस को लग्न मान कर ) एवं साथ में नैसर्गिक कारक ग्रह, चर एवं स्थिर कारक ग्रह जो भी उस विषय से संबंधित हो उनका अध्ययन करना चाहिए । जो फलित प्राप्त हो उसको भी नोटबुक पर लिख लेना चाहिए ।
इस के बाद वर्ग कुण्डली जो भी उस विषय से संबंध रखती हो उस वर्ग कुण्डली का अध्ययन करना चाहिए , उस वर्ग कुण्डली में कारक ग्रह की स्थिति का विचार करना चाहिए । जो भी फलित प्राप्त हो उसको नोटबुक पर लिख लेना चाहिए ।
इस के बाद दशा विचार , जिस ग्रह की दशा चल रही है उसका विषय संबंध देखें कि क्या वह ग्रह उस कार्य की सफलता को दर्शाता है या नहीं , वह ग्रह जन्म कुण्डली में कोनसे भाव से संबंधित है और जिस विषय का आप विचार कर रहे हो उस भाव से कोनसे भाव का स्वामित्व दशा में चल रहे ग्रह को प्राप्त है । जन्म कुण्डली में दशा में चल रहे ग्रह के बल का अध्ययन करना चाहिए , जिस से पता लगे कि दशा के दौरान वह ग्रह कितना प्रभावी है ।
दशा और बल अध्ययन के बाद गोचर अध्ययन करना चाहिए , जिस विषय वस्तु का विचार आप कर रहे हो उस से संबंधित ग्रह एवं कारक ग्रह का गोचर किस राशि पर से है, उस राशि में उस ग्रह को अष्टकवर्ग एवं सर्वाष्टकवर्ग के आधार पर मिलने वाले अंकों का भी विचार करना चाहिए , गोचर में अर्गला विचार भी करना चाहिए जिस से कार्य में आने वाली बाधा का भी अनुमान हो या फिर शुभ अर्गला से कार्य की सफलता का विचार करना चाहिए ।
उदाहरण के लिए किसी विद्यार्थी के लिए उसकी शिक्षा का विचार करना हो : जन्म कुण्डली का 4th भाव शिक्षा का मुख्य भाव है, ज्ञान प्राप्ति की इच्छा 5th , स्कूल / कालेज में अच्छे मित्रों का सानिध्य 7th भाव , देर तक लग्न और मेहनत से पढ़ाई करना 8th भाव, पारिवारिक माहौल का विचार 2nd भाव से किया जाता है । इस तरह लग्न कुण्डली में 2, 4, 5, 7, 8वे भाव की शूभता एवं इन भाव में आने वाली राशि के आधार पर स्वामी ग्रह को जान कर उनका अध्ययन करना चाहिए तथा कारक ग्रह बुध की स्थिति का विचार करना चाहिए । इसी तरह इन्ही भावो का विचार चन्द्र एवं सूर्य कुण्डली से करना चाहिए , इस के बाद वर्ग कुण्डली यानी D 24 में भी 2, 4, 5, 7, 8वे भाव का अध्ययन एवं कारक ग्रह बुध की स्थिति का अध्ययन करना चाहिए । इस के बाद दशा की अनुकूलता का विचार करना चाहिए जैसे कि शिक्षा प्राप्त कर रहे जातक के लिए जन्म कुण्डली अनुसार 2, 4, 5, 7, 8वे भावो से संबंधित दशा अनुकूल होती है । इस के साथ ही महादशा एवं अंतरदशा ग्रह के बीच शत्रुता एवं मित्रता संबंध का भी विचार कर लेना चाहिए ।