Lesson 17 - Grehon Ke Bal Prakar Se Jude Vichar

 Lesson 17 - Grehon Ke Bal Prakar Se Jude Vichar 

ज्योतिष अनुसार ग्रहों के बल प्रकार संबंधी विचार

 

ज्योतिष अनुसार जन्म कुण्डली में प्रभाव देने वाले ग्रहों में उनके बल का विचार महत्वपूर्ण है , क्योंकि प्रभाव देने के लिए ग्रह का सिर्फ शुभ भाव या शुभ राशि में ही होना ज़रूरी नहीं और भी बहुत से पहलू देखने की ज़रूरत होती है जैसे कि दिशा बल देखना क्योंकि हर ग्रह की कारक दिशा होती है जिस से संबंधित होकर वह ग्रह शूभता देता है जैसे कि सूर्य और मंगल पूर्व व दक्षिण दिशा में , चन्द्रमा व बुध उत्तर दिशा में बलि होकर शूभता देते हैं , इसी तरह अन्य बल गणना जैसे कि वर्ग कुण्डली जैसे कि नवांश कुण्डली व दशमांश कुण्डली में भी ग्रहों के बल का अध्ययन किया जाता है , इस तरह ज्योतिष में ग्रहों के बल गणना की प्रक्रिया को छठबल गणना कहा जाता है जिस में कुल 6 तरह के बल का अध्ययन किया जाता है जो कि इस प्रकार हैं : स्थान बल, काल बल, दिग बल,  चेष्ठा बल, नैसर्गिक बल, दृक बल । 

इस तरह बल गणना की इकाई को रुपस कहा जाता है , जिस अनुसार ग्रहों का बल न्यूनतम 2 - 3 रुपस से लेकर अधिकतम 14 - 15 रूपस के दरमियान होता है , जिस में 12 से 15 के दरमियान बल को सर्वाधिक , एवं 5 से कम होने को बलहीन माना जाता है और बलहीन ग्रह दशा आने पर  भावों से संबंधित फल देने में वह ग्रह असमर्थ होता है । 

ताजिक ज्योतिष में बल गणना : इसी तरह जो वर्ष प्रवेश के आधार पर जो जन्म कुण्डली बनाई जाती है जिसको ताजिक वर्ष प्रवेश कुण्डली कहा जाता है , इस में भी ताजिक ज्योतिष अनुसार वर्ष कुण्डली में विराजमान ग्रहों की बल गणना का प्रावधान है , जो कि 2 तरह से होता है : पंचवर्गीय बल तथा द्वादश वर्गीय बल 

पंचवर्गीय बल साधन : इस में ग्रहों के बल को 5 प्रक्रिया में देखा जाता है :

 राशि बल , उच्च बल, सीमा बल, द्वेषकोंण बल, नवमांश बल 

द्वादश वर्गीय बल साधन : वर्ष प्रवेश कुण्डली के आधार पर जो 12 तरह की वर्ग कुण्डली बनाई जाती है उन में ग्रहों के बल का अध्ययन करने को द्वादश वर्गीय बल साधन कहा जाता है ।

इस तरह जन्म कुण्डली एवं वर्ष कुण्डली में ग्रहों के बल का अध्ययन करने के बाद ही दशा में चल रहे ग्रहों से मिलने वाले फल का विचार किया जाता है , क्योंकि बहुत बार ऐसा होता है कि लाभ भाव के स्वामी ग्रह की दशा चल रही होती है लेकिन जातक धन की कमी से जूझ रहा होता है, ऐसा उस ग्रह के बल में कमी के कारण संभव हो सकता है , या फिर अष्टकवर्ग से विचार कर लेना चाहिए ।

Deep Ramgarhia

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