Lesson 16 - Ashtakvarga Se Faladesh

 Lesson 16 -  Ashtakvarga Se Faladesh 

ज्योतिष में अष्टकवर्ग से शुभ - अशुभ फलित विचार

 

ज्योतिष अनुसार अष्टकवर्ग एवं सर्वाष्टकवर्ग में ग्रह एवं संबंधित राशियों के बल का अध्ययन अंकों के रूप में किया जाता है । यहां अष्टकवर्ग से मतलब है आठ तरह की कुण्डली ( सूर्य से शनि सहित 7 कुण्डली एवं लग्न कुण्डली ) इन आठ कुण्डली में अध्ययन कर जो बल निकाला जाता है वह अष्टकवर्ग होता है , और इन सब के कुल योग को सर्वाष्टकवर्ग कुण्डली में राशियों को जो बल प्रदान किया जाता है उसको सर्वाष्टकवर्ग कहा जाता है । अष्टकवर्ग में अधिक्तम अंक 8 होते हैं जबकि सर्वाष्टकवर्ग में अधिक्तम अंक 40 के करीब होते हैं । 

इस तरह जिस अष्टकवर्ग कुण्डली में जिस भाव में 4 से ज़्यादा अंक हो उस भाव पर से ग्रह के गोचर करने पर शुभ फल की वृद्धि होती है , जबकि कम अंक होने पर हानि का विचार किया जाता है । इसी तरह सर्वाष्टकवर्ग में जिस राशि में 28 से अधिक अंक हो उस राशि में ग्रह के गोचर करने पर शुभ फल की वृद्धि होती है जबकि 28 से कम अंक होने पर हानि का विचार किया जाता है । इस से संबंधित अन्य सामान्य सिद्धांत इस प्रकार हैं : 

1. कोई भी राशि या भाव जहां 28 से अधिक बिंदु हों - शुभ फल देता है। जितने अधिक बिंदु होंगे, उतना अच्छा फल देगा। व्यवहार में 25 से 30 के बीच बिन्दुओं को सामान्य कहा गया है और 30 से ऊपर बिंदु होने से विशेष शुभ फल होंगे।

2. ग्रह चाहे कुंडली में उच्च क्षेत्री ही क्यों न हों, पर अष्टक वर्ग में सर्वाष्टक में बिंदु कम होने पर फल न्यून ही होगा।

3. 6-8-12 भाव में भी ग्रह शुभ फल दे सकते हैं, यदि वहां बिंदु अधिक हों किन्तु कुछ विद्वानों का मत अलग भी है।

4. सूत्र - यदि नवें, दसवें, ग्यारहवें और लग्न में इन सभी स्थानों पर 30 से ज्यादा बिंदु हों तो जातक का जीवन समृद्धि कारक रहेगा। इसके विपरीत यदि इन भावों में 25 से कम बिंदु हों तो रोग और मजबूर जीवन जीना होगा।

5. यदि ग्यारहवें भाव में दसवें से ज्यादा बिंदु हों और ग्यारहवें में बारहवें से ज्यादा, साथ ही लग्न में बारहवें से ज्यादा बिंदु हों तो जातक सुख समृद्धि का जीवन भोगेगा।

6. यदि लग्न, नवम, दशम और एकादश स्थानों में मात्र 21 या 22 या इससे कम बिंदु हों और त्रिकोण स्थानों पर अशुभ ग्रह बैठे हों तो जातक भिखारी का जीवन जीता है।

7. यदि चन्द्रमा सूर्य के निकट हो, पक्षबल रहित हो, चन्द्र राशि के स्वामी के पास कम बिंदु हों, जैसे 22 और शनि देखता हो तो जातक पर दुष्टात्माओं का प्रभाव रहेगा। यदि राहु भी चंद्रमा पर प्रभाव डाल रहा हो तो इसमें कोई दो राय नहीं है।

8. जब-जब कोई अशुभ ग्रह ऐसे भाव पर गोचर करेगा, जिसमें 21 से कम बिंदु हों तो उस भाव से सम्बन्धित फलों की हानि होगी।

9. इसके विपरीत जब कोई ग्रह ऐसे घर से विचरण करता है जहां 30 से अधिक बिंदु हों तो उस भाव से सम्बन्धित शुभ फल मिलेंगे, जो उस ग्रह के कारकत्व और सम्बन्धित कुण्डली में उसे प्राप्त भाव विशेष के स्वामित्व के रूप में मिलेंगे। 

10. ग्रह जिन राशियों के स्वामी होते हैं और जिन राशियों भावों में वे स्थित होते हैं, उन स्थानों से सम्बन्धित अच्छे फल वे अपनी दशा-अन्तर्दशा में देंगे। सूक्ष्मतर विश्लेषण के लिए दशा-स्वामी के भिन्नाष्टक वर्ग का अध्ययन करना चाहिए। मात्र सर्वाष्टक बिंदु देखकर ही कुण्डली का फल नहीं कहना चाहिए। कुण्डली में राजयोग, धनयोग या दूसरे योग होने भी जरुरी हैं। अष्टक वर्ग उन्हीं को सुदृढ़ करेगा जो योग कुण्डली में उपस्थित हैं। अष्टक वर्ग द्वारा ऐसे योगों की वास्तविक शक्ति का मूल्यांकन भी किया जाता है।

Deep Ramgarhia

blogger and youtuber

Post a Comment

Thanks for visit here, If you have any query related to this post you can ask in the comment section, you can also follow me through my facebook page

Previous Post Next Post