Lesson 15 - Janam Kundli Me Yog Vichar
रवि योग : जन्म कुण्डली में निम्न ग्रह योग रवि योग बनाते हैं :
वेषी योग : सूर्य से द्वितीय भाव में चन्द्रमा के इलावा कोई भी ग्रह हो तो यह योग बनता है , ऐसा जातक कम भौतिक सुख के होते हुए भी प्रसन्न चित रहते हुए खुशी से रहता है ।
वोशी योग : सूर्य से द्वादश भाव में चन्द्रमा के इलावा कोई भी ग्रह हो तो यह योग बनता है, ऐसा जातक अच्छा विद्यार्थी, दान - पुण्य करने वाला, किसी ना किसी गुण और कला के चलते प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाला होता है ।
उभाचार्य योग : सूर्य से द्वितीय और द्वादश भावो में चन्द्रमा के इलावा अन्य ग्रह हो तो यह योग बनता है, ऐसा जातक सभी तरह के भौतिक सुख सुविधाओं को भोगने वाला होता है ।
बुधादित्य योग : सूर्य और बुध एक ही राशि में होने पर यह योग बनता है, ऐसा जातक अपने कार्यो में निपुण होता है , और बेहतर कार्यो की वजह से समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है , यह योग दशमांश कुण्डली में बन रहा हो तो बेहतर फल देता है ।
चन्द्र योग : जन्म कुण्डली में निम्न ग्रह योग चन्द्र योग बनाते हैं :
सुफ़ना योग : चन्द्रमा से द्वितीय भाव में सूर्य के इलावा कोई भी ग्रह हो तो यह योग होता है , ऐसा जातक अच्छी सोच समझ रखने वाला, सम्मानित , खुद से धनार्जन करने वाला होता है ।
अफना योग : चन्द्रमा से द्वादश भाव में सूर्य के इलावा कोई भी ग्रह हो तो यह योग होता है, ऐसा जातक उच्च अधिकारी , रोग से रहित, भौतिक सुख भोगने वाला होता है ।
दुर्धरा योग : चन्द्रमा से द्वितीय एवं द्वादश भावो में सूर्य के इलावा कोई भी ग्रह हो तो यह योग होता है, ऐसा जातक धनी, दान पुण्य करने वाला, सभी तरह के भौतिक सुख प्राप्त करने वाला होता है ।
केमद्रुम योग : चन्द्रमा से युति कोई ग्रह ना करे और ना ही द्वितीय एवं द्वादश भावो में कोई ग्रह हो तो यह योग होता है , ऐसा जातक दुर्भाग्य , दरिद्र , असफलता से परेशान होता है ।
चंद्र मंगल योग : चंद्र मंगल युति होने पर यह योग होता है, ऐसा जातक भौतिक सुखों को प्राप्त करता है, धनी होता है लेकिन माता से कष्ट प्राप्त करता है ।
आदि योग : चन्द्रमा से 6, 7, 8वे भाव में नैसर्गिक शुभ ग्रह होने पर यह योग बनता है, ऐसा जातक साहसी, जोखिम भरे कार्य करके सफलता प्राप्त करने वाला होता है ।
गज केसरी योग : कुंडली में गुरु और चंद्रमा के मजबूत होने से गज केसरी योग बनता है। अगर कुंडली में चंद्रमा और बृहस्पति केंद्र में एक दूसरे की तरफ दृष्टि कर के बैठे हों तब यह शक्तिशाली योग बनता है। इसी के साथ कुंडली में उच्च का चंद्रमा वृषभ राशि में होने से और उच्च का बृहस्पति कर्क राशि में होने से इस योग के अच्छे फल प्राप्त होते हैं।
महापुरुष योग : ज्योतिष अनुसार निम्न 5 ग्रहों से बनने वाले योग को महापुरुष योग कहा जाता है :
रूचक योग : जन्म लग्न कुण्डली के केंद्र भाव ( 1, 4, 7, 10 ) में मंगल अपनी या उच्च राशि में हो तो यह योग होता है, ऐसा जातक विद्वान लोगो की संगत करने वाला, जोखिम भरे कार्य में भी सफल होने वाला, शत्रु पर विजय प्राप्त करने वाला , भाई एवं मित्रों से सुख प्राप्त करने वाला होता है ।
भद्र योग : जन्म लग्न कुण्डली के केंद्र भाव ( 1, 4, 7, 10 ) में बुध अपनी या उच्च राशि में हो तो यह योग होता है, ऐसा जातक सगे संबंधी एवं मित्रों से सुख प्राप्त करने वाला, वाणी से दुसरों को प्रभावित करने वाला, धार्मिक एवं धनी होता है ।
शश योग : जन्म लग्न कुण्डली के केंद्र भाव ( 1, 4, 7, 10 ) में शनि अपनी या उच्च राशि में हो तो यह योग होता है, ऐसा जातक दान पुण्य एवं परूपकार करते हुए सुख प्राप्त करने वाला, समाज भलाई के कार्य करने वाला, प्रकृति से प्रेम करने वाला, तकनीकी विषयो की शिक्षा प्राप्त करके सफल होता है ।
मालव्य योग : जन्म लग्न कुण्डली के केंद्र भाव ( 1, 4, 7, 10 ) में शुक्र अपनी या उच्च राशि में हो तो यह योग होता है, ऐसा जातक कला में निपुण, भौतिक सुख भोगने वाला, अच्छे अच्छे वस्त्र एवं भोजन का भोग करने वाला होता है ।
हंस योग : जन्म लग्न कुण्डली के केंद्र भाव ( 1, 4, 7, 10 ) में गुरु अपनी या उच्च राशि में हो तो यह योग होता है, ऐसा जातक समाज में सम्मानित, कार्यो में निपुण, विद्वान एवं धार्मिक होता है ।
राज योग : जन्म कुण्डली में निम्न ग्रह योग होने पर जातक राजा के समान सुख भोगता है :
लग्नेश एवं पंचमेश की युति साथ ही पुत्र कारक एवं आत्म कारक ग्रहो की युति हो तो राजयोग होता है , ऐसा जातक संतान प्राप्ति के बाद से तरक्की करता है , राजा एवं मंत्री पद को प्राप्त होता है राजसिक सुख भोगता है ।
आत्म कारक ग्रह एवं भाग्येश की युति हो इन पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो भी राजयोग होता है ।
द्वितीयेश, सुखेश , पंचमेश एवं आत्म कारक ग्रह शुभ ग्रह की राशि में हो तो राजयोग होता है ।
त्रितयेश, षष्ठेश एवं आत्म कारक ग्रह अशुभ ग्रह की राशि में हो तो राजयोग होता है ।
घटी लग्न एवं होरा लग्न का एक ही ग्रह के द्वारा दृष्ट होना राजयोग देता है ।
घटी लग्न एवं होरा लग्न के स्वामी ग्रह अपनी / उच्च राशि में हो तो राजयोग होता है ।
पंचमेश एवं भाग्येश की युति हो और शुभ ग्रहों से दृष्ट हो राजयोग देती है ।
दशमेश चतुर्थ में , चतुर्थ का स्वामी ग्रह दसम भाव में हो , साथ में पंचमेश / भाग्येश से दृष्ट हो तो राजयोग होता है ।
जन्म कुण्डली में 4 ग्रह उच्च या अपनी राशि में हो तो जातक राजा के समान सुख भोगता है ।
जन्म कुण्डली के केंद्र भाव में शुभ ग्रह हो और 3, 6, 11वे भाव में अशुभ ग्रह हो तो भी राजयोग होता है ।
पंचमेश 1, 4, 10वे भाव में हो एवं लग्नेश , भाग्येश से युति करे तो भी राजयोग होता है ।
जन्म कुण्डली में चन्द्रमा बलि हो एवं वर्गोत्तम हो तो भी राजयोग होता है ।
धन योग : जन्म कुण्डली में निम्न ग्रह योग होने पर जातक धन संपदा के सुख भोगता है :
द्वितीयेश एवं लाभेश में राशि परिवर्तन योग होने पर धन योग होता है ।
द्वितीयेश का संबंध 4 / 5 / 7 9 / 10वे भाव के स्वामी ग्रह से बने तो पारिवारिक धन संपदा से धनी होता है ।
एकादश के स्वामी ग्रह का संबंध 4 / 5 / 7 / 9 / 10वे भाव के स्वामी ग्रह से बने तो खुद की आय से धनी होता है ।
पंचमेश / भाग्येश के द्वितीय एवं एकादश भाव में होने पर धन योग होता है ।
चतुर्थ / सप्तम / दसम के स्वामी ग्रह का द्वितीय एवं एकादश भाव में होने पर धन योग होता है ।
चन्द्र / गुरु / शुक्र शुभ राशि के होकर द्वितीय एवं एकादश भावों से संबंधित हो तो भी धन योग होता है ।
दरिद्र योग : जन्म कुण्डली में निम्न ग्रह योग होने पर जातक गरीबी एवं दरिद्रता से पीड़ित होता है
लग्नेश का 6 / 8 / 12वे भाव में होकर मारक ग्रहो से संबंधित होना ।
द्वितीयेश का 12वे भाव में पापी / मारक ग्रहों के बीच होना ।
लग्नेश / सूर्य / चन्द्रमा का संबंध पापी / मारक ग्रहो से होना ।
पंचमेश / भाग्येश का 6 / 8 / 12वे भाव में होकर मारक ग्रहो से संबंधित होना ।
द्वितीय, चतुर्थ एवं एकादश भावों को नैसर्गिक अशुभ ( शनि, मंगल, राहु ) ग्रहों द्वारा देखा जाना ।
पंचमेश एवं सप्तमेश का 6 / 8/ 12वे भावों में होकर अशुभ ग्रहों से दृष्ट होना ।
भाग्येश एवं दशमेश का 6 / 8 / 12वे भावों में होकर अशुभ ग्रहों से दृष्ट होना ।