Lesson 14 - Janam Kundli Me Argla Vichar
ज्योतिष में ग्रह और राशियों की दृष्टि के इलावा अर्गला एवं विरोध अर्गला का विचार भी महत्वपूर्ण है जो कि ग्रह की युति एवं दृष्टि जैसा ही प्रभावी होता है । किसी भी ग्रह से 2, 4, 5, 11वे भाव में विराजमान ग्रह से अर्गला विचार किया जाता है जो कि 2 तरह का होता है शुभ एवं अशुभ अर्गला ग्रहो की प्रकृति के आधार पर । नैसर्गिक शुभ ( पूर्णिमा का चन्द्रमा, शुभ ग्रहों से दृष्ट बुध, गुरु एवं शुक्र ) ग्रहो से अर्गला संबंध बनने पर कार्य की सफलता के योग बनते हैं , जबकि नैसर्गिक अशुभ ( अमावस्या का चन्द्रमा, मंगल, अशुभ ग्रहों से दृष्ट बुध, शनि, राहु और केतु ) ग्रहो से बनने वाला अर्गला संबंध कार्य में बाधा को दर्शाता है ।
उदाहरण के लिए किसी विद्यार्थी के लिए शिक्षा का विचार करेंगे जिसका संबंध चतुर्थ भाव से होता है , शिक्षा के लिए ज़रूरी है बुद्धि यानी 5th भाव ( 2nd from 4th ) , अच्छा माहौल , अध्य्यापक का सपोर्ट , मित्रो का सहयोग यानी 7th भाव ( 4th from 4th ) , लंबे समय तक ध्यान और एकाग्रता के साथ पढ़ाई में जुटे रहना 8th भाव ( 5th from 4th ) , शिक्षा के लिए अच्छा पारिवारिक माहौल, माता - पिता का सहयोग यानी 2nd भाव ( 11th from 4th ) , इस तरह यदि किसी की जन्म कुण्डली में 2, 5, 7th भावो में शुभ ग्रह होंगे तो उसको शिक्षा प्राप्त करने में कोई बाधा नहीं होगी, जबकि इस के विपरीत इन्ही भावो में अशुभ ग्रह विराजमान हो तो शिक्षा प्राप्ति में बाधा आती है । इसी तरह गोचर का भी शुभ - अशुभता के लिए विचार करना चाहिए ।
इसी तरह अगर कोई नोकरी प्राप्ति / इंटरव्यू / प्रतियोगी परीक्षा के लिए जा रहा हो तो उस दिन गोचर कुण्डली अनुसार विचार कर लेना चाहिए कि जन्म कुण्डली के सप्तम भाव ( 2nd from 6th ) , नवम भाव ( 4th from 6th ) , दसम भाव ( 5th from 6th ) चतुर्थ भाव ( 11th from 6th ) भावो में शुभ ग्रह होने चाहिए तभी सफलता प्राप्ति के योग होते हैं । जबकि अशुभ और पापी ग्रह हो तो सफलता में बाधा का विचार करना चाहिए ।
विरोध अर्गला विचार : विरोध अर्गला यानी किसी भाव के लिए बनने वाले शुभ / अशुभ अर्गला संबंध को नष्ट करना जो कि किसी ग्रह से 3, 9, 10, 12वे में विराजमान ग्रहो से विचार किया जाता है । शुभ अर्गला संबंध के नष्ट होने से कार्य सफलता में बाधा जबकि अशुभ अर्गला संबंध के नष्ट होने से कार्य में सफलता का विचार किया जाना चाहिए ।
उदाहरण के लिए किसी ग्रह से चतुर्थ भाव में शुभ ( चन्द्रमा, बुध, गुरु, शुक्र ) ग्रह विराजमान होने से शुभ अर्गला का फल होता है , लेकिन अगर उसी ग्रह से दसम भाव में अशुभ ( सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु ) ग्रह विराजमान हो जाये तो बनने वाले शुभ अर्गला का फल नहीं मिलता, इसी तरह अगर अर्गला अशुभ ग्रहों से बन रहा हो जो कि कार्य में रुकावट देता है तो दसम भाव में विराजमान शुभ ग्रह से अशुभ अर्गला का फल नष्ट होने से कार्य की रुकावट दूर होती है ।
इसी तरह किसी ग्रह से द्वितीय भाव से बनने वाले अर्गला का परिहार 12वे भाव में विराजमान ग्रह , पंचम भाव से बनने वाले अर्गला का परिहार नवम भाव में विराजमान ग्रह और एकादश भाव में विराजमान ग्रह से बनने वाले अर्गला का परिहार तृतीय भाव में विराजमान ग्रह अर्गला का परिहार करते हैं । इस तरह अर्गला और विरोध अर्गला से कार्य की सफलता या असफलता का विचार किया जाता है ।