Lesson 11 - Janam Kundli Ke Karak Greh
ज्योतिष में जीवन के किसी भी विषय पर शुभ - अशुभता का विचार एवं घटना के फल में कारक ग्रहो का विशेष महत्व होता है , इस के बिना फलादेश अधूरा ही रहता है । यही कारण है कि सिर्फ भाव और उनके स्वामी ग्रहो का अध्ययन कर किया गया फलादेश सही साबित नहीं हो पाता, क्योंकि बहुत बार ऐसा होता है कि भावो और उनके स्वामी ग्रहो से घटना के होने का फलित प्राप्त हो जाता है लेकिन कारक ग्रहो से यह फलित प्राप्त नहीं होता जिस की वजह से वह घटना नहीं होती, इस तरह कारक ग्रहो को ignore करने वाले सही फलादेश करने में असमर्थ होते हैं । कुल मिला कर ज्योतिष में 3 तरह के कारक ग्रहो की चर्चा की गई है : 1, नैसर्गिक ( भावों के ) कारक 2, स्थिर कारक 3, अस्थिर कारक
नैसर्गिक कारक ग्रह : सूर्य : दसम भाव का कारक ( पैतृक धन संपदा, कर्म स्थान में सम्मान और प्रतिष्ठा ) , चन्द्र : द्वितीय भाव का कारक ग्रह ( जमापूंजी, रत्न एवं आभूषण, वस्त्र, वाणी, परिवार ) , मंगल : लग्न भाव का कारक ग्रह ( शारीरिक सुख , जाति, कर्म , व्यवहार, चरित्र ) , बुध : तृतीय भाव का कारक ग्रह ( छोटे भाई बहन, छोटी यात्राएं, मित्र एवं आस पड़ोस ), गुरु : नवम भाव का कारक ग्रह ( पिता एवं गुरु, संस्कार, उच्च शिक्षा, दूर स्थान की यात्राएं , भाग्य ) , शुक्र : सप्तम भाव का कारक ग्रह ( प्रेम संबंध, जीवनसाथी के सुख, साँझीदारी ) , शनि : अष्टम भाव का कारक ग्रह ( गंभीर शारीरिक कष्ट, चोट एवं दुर्घटना, धोखा, डिप्रेशन, चरित्र पर लांछन, दुख दर्द ) , राहु : छठे भाव का कारक ग्रह ( रोज़ के संघर्ष ) , केतु : बाहरवें भाव का कारक ग्रह ( बाहरी संबंध , विदेश यात्रा, मोक्ष प्राप्ति )
स्थिर कारक ग्रह : सूर्य : आत्मा, पिता के सुख, पद एवं प्रतिष्ठा , चन्द्रमा : मानसिक सुख एवं मज़बूती , माता के सुख , मंगल : भाइयों के सुख , ज़मीन के सुख, साहस एवं पराकर्म , बुध : आय के साधन, मित्रता के सुख, वाणी ) , गुरु : जीवन में तरक्की, बड़ो का सानिध्य , सामाजिक सम्मान ) , शुक्र : प्रेमी / प्रेमिका के सुख, उच्च शिक्षा , वाहन सुख ) शनि : आध्यात्मिक तरक्की, ज्योतिष एवं गूढ़ ज्ञान , वैराग्य , कानून , राहु : भौतिक सुख , केतु : मोक्ष ।
अस्थिर कारक ग्रह : ऋषि जैमिनी के अनुसार जैमिनी ज्योतिष में ग्रहो को डिग्री के अनुसार रखा गया है , जिस में सब से ज़्यादा डिग्री प्राप्त ग्रह को आत्मकारक ग्रह और सबसे कम डिग्री प्राप्त ग्रह को दाराकारक ग्रह कहा गया है । इस तरह क्रम में 7 ग्रह होते हैं जिन में राहु और केतु को शामिल नहीं किया गया है , जो कि निम्न अनुसार है
1, आत्मकारक ग्रह : आत्मा, जाति, आचरण एवं शारीरिक सुख , 2, आमात्यकारक ग्रह : पिता के सुख, कैरियर एवं प्रोफेशन का विचार , 3, भातृकारक ग्रह : साहस एवं पराकर्म, भाइयों के सुख , 4, मातृकारक ग्रह : माता एवं ज़मीन के सुख, भौतिक सुख , 5, पुत्रकारक ग्रह : संतान सुख, व्यवसायक सुख , 6, जातिकारक ग्रह : दुर्भाग्य, दुख दर्द एवं कष्ट , 7, दाराकारक ग्रह : प्रेमी / प्रेमिका के सुख, जीवनसाथी के सुख , साँझीदारी के सुख , सरकार से लाभ ।
इस तरह जीवन से संबंधित किसी भी विषय का विचार करते समय भाव और उनके स्वामी ग्रहो का विचार करने के इलावा , इन तीनो कारक ग्रहो का विचार किया जाता है । उदाहरण के लिए पिता के सुख के लिए जन्म कुण्डली का दसम भाव और इसका स्वामी ग्रह, नैसर्गिक कारक ग्रह सूर्य, स्थिर कारक ग्रह गुरु एवं अस्थिर कारक ग्रह आमात्य कारक ग्रह का विचार करना चाहिए । इसी तरह ज़मीन / घर के सुख के लिए जन्म कुण्डली का चतुर्थ भाव उसका स्वामी ग्रह, नैसर्गिक कारक ग्रह चन्द्रमा , स्थिर कारक ग्रह मंगल , और अस्थिर कारक ग्रह मातृकारक ग्रह का विचार करना चाहिए । इस तरह भाव एवं उसके स्वामी ग्रह और तीनों पद्धति से प्राप्त किये गए कारक ग्रहो का अध्ययन करके जो फलित प्राप्त होता है वही सटीक फलादेश होता है ।