Lesson 12 - Janam Kundli Ke Vibhin Lagan

 Lesson 12 - Janam Kundli Ke Vibhin Lagan 

ज्योतिष अनुसार विभिन्न लग्न और उनका उपयोग

 

चन्द्र लग्न : राशि चार्ट में चन्द्रमा जिस भाव में होता है उस राशि को लग्न भाव में रख कर जो कुण्डली बनाई जाती है उसको चन्द्र कुण्डली कहा जाता है । ज्योतिष अनुसार क्योंकि चन्द्रमा मन का कारक है मानसिक मज़बूती का कारक है , गोचर विचार चन्द्र राशि से ही किया जाता है , इस तरह चन्द्र लग्न का बहुत महत्व है । किसी को अपने भौतिक सुखों का कितना अहंकार है यह चन्द्र कुण्डली के लग्न भाव से पता लगता है, कोई अपनी इच्छाओं की वजह से कितनी गंभीर समस्याओं का शिकार हो जाता है यह चन्द्र कुण्डली के 6, 8, 12वे भावो की स्थिति देख कर पता लगता है । कोई ज़मीन ठेके पर या रेंट पर देकर कितना धन कमा सकता है यह चन्द्र कुण्डली के द्वितीय और एकादश भाव से पता लगता है । 

सूर्य लग्न : जन्म कुण्डली में सूर्य जिस राशि में होता है उस राशि को लग्न बना कर जो कुण्डली बनाई जाती है वह सूर्य लग्न कुण्डली होती है । यह इस लिए ज़रूरी है क्योंकि अगर चन्द्रमा मन है तो सूर्य आत्मबल है , कर्म करने के लिए आत्मबल ज़रूरी है । जिस तरह सूर्य उदय होते लोग नमस्कार करते हैं , इसी तरह सूर्य से दसम भाव से संबंधित ग्रह की दशा आने पर जातक कार्यक्षेत्र में प्रतिष्ठित होता है , एकादश से संबंधित दशा आने पर तरक्की करता है, जबकि सूर्य से 4, 8, 12वे भाव से संबंधित ग्रह की दशा झगड़े,  रोग और डिप्रेशन देती है । 

अरुधा लग्न : लग्न कुण्डली में कोई ग्रह अपने भाव से जितने स्थान की दूरी पर होता है, उस ग्रह से उतनी ही स्थान दूरी पर जो राशि होती है उसको अरुधा लग्न कहा जाता है । जैसे कि वृश्चिक लग्न कुण्डली में मंगल 11वे भाव में हो , तो 11वे भाव से 11स्थान की दूरी पर 9वा भाव हुआ इस तरह 9वे भाव में जो राशि है वह अरुधा लग्न होगी । दुनिया में लोगो के सामने आपकी छवि कैसी है या कैसी होनी चाहिए , आप खुद में कैसे सुधार कर सकते हैं कमज़ोरी क्या है इस में अरुधा लग्न बहुत मदद करता है । जैसे कि माने किसी की अरुधा लगन में कर्क राशि आये तो उस जातक को लोग नरम स्वभाव का समझते होंगे और उस के स्वभाव का फायदा उठाएंगे , इस लिए आपको थोड़ा सख्त रवैया रखने की ज़रूरत है । इसी तरह अगर कोई अग्नि तत्व राशि है जैसे कि सिंह या धनु तो आप देखने में क्रोधी होंगे , तो अपनी अच्छी छवि के लिए क्रोध को कम करें । 

पक्का लग्न : किसी भाव का स्वामी ग्रह जिस राशि में होता है उसको पक्का लग्न कहा जाता है , जैसे कि लग्नेश यदि सिंह राशि में हो तो सिंह राशि पक्का लग्न होगा । ज्योतिष अनुसार ग्रह करता हैं यानी कार्य करने वाले , जबकि राशियां परिस्थिति को दर्शाती हैं , पक्का लग्न राशि पर से क्रूर ग्रहो ( सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु ) का गोचर जातक को शारीरिक रूप से कमज़ोर करता है, जैसे कि किसी विद्यार्थी का पढ़ाई में मन ना लगे, किसी का नोकरी / व्यवसाय में मन ना लगे , कोई जिस भी परिस्थिति या कार्य में हो उस से भाग जाने का मन व्यक्ति का हो यह स्थिति गोचर के दौरान क्रूर ग्रहो का संबंध पक्का लग्न से होने पर होती है , इस तरह जिस तरह की परिस्थिति हो उस अनुसार उपाये किये जाते हैं । 

करकामन्श लग्न : आत्मकारक ग्रह और उसकी राशि को लग्न बना कर नवमांश कुण्डली के ग्रहो को इस में रखा जाता है , इस तरह जो कुण्डली बनती है इसको करकामन्श लग्न कहा जाता है । आत्मकारक ग्रह आत्मा का कारक है , और नवमांश कुण्डली उच्च शिक्षा , उच्च कर्म हैं , हमारे कर्मो में आत्मा का क्या रोल है , आत्म विश्वास कैसा है , आध्यात्मिकता कितनी है , कोई किये गए वायदों को कितना निभाता है यह इस लग्न से पता लगता है ।

घटी लग्न : जिस तरह लग्न कुण्डली शारिरिक सुख को और चन्द्र कुण्डली मन की मज़बूती को दर्शाती है , इसी तरह घटी लग्न प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्ति के बाद की व्यवहारिकता को दर्शाता है , कि जैसे धन आ जाने के बाद, किसी बड़े अहुदे की प्राप्ति के बाद व्यक्ति में कैसे परिवर्तन आएंगे , उसके अहंकार में कितनी वृद्धि होगी , या फिर धन और प्रतिष्ठा को लेकर उस व्यक्ति की सोच क्या है यह घटी लग्न दर्शाता है । 

होरा लग्न : जिस तरह सूर्य और चन्द्र लग्न होते हैं इसी तरह होरा लग्न कुण्डली बनाई जाती है । जिस तरह राशि चार्ट का लग्न शरीर की सुंदरता को लेकर अंहकार को दर्शाता है , इसी तरह होरा लग्न कुण्डली का लग्न भाव धन को लेकर अहंकार को दर्शाता है , इसी तरह 12 भावो से विचार किया जाता है , जैसे कि होरा कुण्डली के केंद्र और त्रिकोण भावो से धन से प्रतिष्ठा , और 6, 8, 12भावो से धन की वजह से होने वाली समस्या । 

ग्रह लग्न : हर भाव का कारकतत्व किसी ग्रह के पास होता है, जो कि : सूर्य : 9, 10, 11भाव ,चन्द्रमा : 1, 2, 4भाव , मंगल : 3 , बुध : 6, गुरु : 5, शुक्र : 7, शनि : 8, 12भाव । जिस राशि में जन्म कुण्डली में कोई ग्रह होता है उसको लग्न बना कर उस से संबंधित फल विचार किये जाते हैं । जैसे कि लग्न कुण्डली में 3rd भाव से साहस और पराकर्म , यात्रा का विचार किया जाता है , इसी तरह मंगल से 3rd भाव से भी इन्ही विषयो का विचार किया जाता है । लग्न और मंगल में से जो बली हो उस से 3rd भाव से संबंधित दशा आने पर साहस और पराकर्म की वृद्धि होती है । इसी तरह लग्न से पंचम भाव से शिक्षा और संतान , तो गुरु से भी पंचम भाव से शिक्षा और संतान का विचार किया जाता है । क्योंकि कई बार ग्रह कमज़ोर स्थिति में होने की वजह से लग्न से पंचम / पंचमेश की दशा में संतान प्राप्ति नहीं होती , लेकिन गुरु से पंचम भाव से संबंधित ग्रह की दशा आने पर संतान प्राप्ति हो जाती है । इस तरह ग्रह लग्न से विचार भी महत्वपूर्ण है । 

Deep Ramgarhia

blogger and youtuber

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