Vimshotri Dasha Ke Baare Me Jaankari
हर ग्रह की महादशा में क्रम में 3, 5 और 7 वे ग्रह की अंतरदशा अशुभ फल देने वाली होती है ।
ग्रह की महादशा में, जो ग्रह उस से 3, 6, 8, 12वे भाव मे विराजमान हो , वह ग्रह भी अंतरदशा के दौरान अशुभ फल देता है ।
जो ग्रह आपस मे नैसर्गिक शत्रु भाव रखते हैं, वह ग्रह अंतरदशा में अशुभता देते हैं, जैसे कि सूर्य में शनि की अंतरदशा , शनि में सूर्य की अंतरदशा , मंगल में राहु की अंतरदशा , राहु में मंगल की अंतरदशा आदि ।
कुण्डली में 11वे भाव का स्वामी ग्रह पापी होने के कारण अशुभ फल देता है , लेकिन साथ ही धन वृद्धि भी करता है । लेकिन ग्रह के निर्बल , अस्त , दीन , हीन होने की स्थिति में ग्रह अपनी अशुभता नहीं देगा , और साथ ही धन वृद्धि भी नही करेगा ।
हर ग्रह अपनी अंतरदशा में अपने से 7वे भाव के पूर्ण फल देता है , जैसे कि लग्न भाव मे विराजमान ग्रह प्रेम संबंधों का सुख देगा , 4th भाव मे विराजमान ग्रह नौकरी देगा , इसी तरह 6th भाव मे विराजमान ग्रह मान हानि , खर्च की वृद्धि देगा । लेकिन अंतिम निर्णय गोचर पर निर्भर करेगा ।
कुण्डली में 4th भाव मे पापी ग्रह अपनी दशा में नौकरी के लिए घर से दूर करते हैं , जबकि शुभ ग्रह , जैसे कि चंद्रमा पाप ग्रह के प्रभाव में हो तो परिवार के साथ होने का सुख मिलता है, लेकिन सुख साधन जैसे वाहन, भूमि का सुख नहीं मिलता ।
इसी तरह 12वे भाव मे विराजमान ग्रह अगर पापी हो , तो धन का खर्च रोग, शत्रु पर होता है , जबकि शुभ ग्रह होने पर धन का खर्च भविष्य को बेहतर बनाने की योजनाओं पर होता है ।
कुण्डली में 10th भाव मे विराजमान ग्रह की अंतरदशा हो , लेकिन दशमेश 8th भाव मे हो तो रुचि ज्योतिष , काम वासना , शारिरिक सुख , गुड़ ज्ञान के प्रति बढ़ती है , साथ मे 12वे भाव का संबंध होने पर काम वासना की पूर्ति होती है ।
लग्न भाव मे विराजमान ग्रह की दशा हो, और लग्नेश 8th भाव मे हो, तो भी प्रेमी / प्रेमिका की और से शारिरिक सुख की प्राप्ति होती है । साथ मे 12वे भाव का संबंध होने पर बदनामी भी होती है ।
कुण्डली के 5th भाव मे विराजमान ग्रह की अंतरदशा हो, लेकिन पंचमेश 8th भाव मे हो तो गूढ़ ज्ञान की प्राप्ति, शेयर बाज़ार, धन निवेश से धन की प्राप्ति होती है ।
कुण्डली में 2, 3 , 7वे भाव मे विराजमान ग्रह की अंतरदशा हो, तो यह मारक होती है जो अशुभ फल देती है । लेकिन यदि ग्रह नैसर्गिक शुभ ( गुरु, शुक्र ) हो तो अशुभ फल नहीं होते , यदि ग्रह खुद लग्नेश हो या फिर लग्नेश का मित्र ग्रह हो तो भी अशुभ फल नहीं मिलते , लेकिन सुख साधनों में वृद्धि करने में भी ग्रह असमर्थ रहेगा ।
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इसी तरह 2, 3, 7वे भाव के स्वामी ग्रह भी मारक होते हैं और अशुभ फल देते हैं । लेकिन सूर्य और चंद्रमा को मारक होने का दोष नहीं लगता , लग्नेश खुद यदि 2, 3, 7 वे भाव का स्वामी ग्रह हो तो भी मारक दोष नहीं लगता , लग्नेश के 2, 3, 7वे भाव मे होने पर भी मारक दोष नहीं लगता ।