Lesson 9 - Shubh Ashubh Bhavo Ki Jaankari
कुण्डली के त्रिकोण भाव : जन्म कुण्डली के 1, 5, 9वे भावो को त्रिकोण भाव कहा जाता है । इन भावो के स्वामी ग्रह की दशा हमेशा ही शुभ फल देते हुए व्यक्ति की सामाजिक पद प्रतिष्ठा में वृद्धि करती है, जातक को नई चीजें सीख कर आगे बढ़ने के अवसर प्राप्त होते हैं , एक तरह से जातक का personality development इन भाव से संबंधित दशा में होता है ऐसा कह सकते हैं । हालांकि लग्न की स्थिति के आधार पर अगर त्रिकोण भाव का स्वामी ग्रह 6, 8, 12वे का भी स्वामी हो तो शुभ प्रभाव में कमी आती है ।
कुण्डली के केंद्र भाव : जन्म कुण्डली के 1, 4, 7, 10वे भावो को केंद्र भाव कहा जाता है । इन भावो के स्वामी ग्रहो की दशा भी शुभ फल देती है, शुभ फल देते हुए इन भावो के स्वामी ग्रह भौतिक सुखों की वृद्धि करते हैं, रिश्तो का सुख देते हैं , कार्यस्थल का विस्तार करते हैं ।
कुण्डली के पनफर भाव : जन्म कुण्डली के 2, 5, 8, 11वे भावो को पनफर भाव कहा जाता है । यह भाव द्वितीय भाव से केंद्र स्थान हैं , इस लिए द्वितीय भाव से संबंधित विशेष सुख दुख जैसे कि आर्थिक स्थिति में उतार चढ़ाव , व्यवसाय में सफलता, धन संपदा के सुख, परिवारजनों व अन्य रिश्तों के सुख में इन भावो की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । इन भावो के स्वामी ग्रह अपने नैसर्गिक स्वभाव अनुसार फल देते हैं जैसे कि क्रूर और पापी ग्रह ( सूर्य, मंगल, शनि ) इन भावो के स्वामी हो तो अशुभता देते हुए घर परिवार के सुख धन संपदा के सुख खराब करते हैं , लेकिन यदि स्वामी ग्रह शुभ ग्रह ( चन्द्र, बुध, गुरु, शुक्र ) हो तो घर परिवार का अच्छा सुख और व्यवसाय में सफलता देते हैं ।
कुण्डली के अपोकलिमस भाव : जन्म कुण्डली के 3, 6, 9, 12वे भावो को अपोकलिमस भाव कहा जाता है । यह भाव तृतीय से केंद्र स्थान हैं , इस लिए यह बल, पराकर्म और साहस की वृद्धि को दर्शाते हैं । इन भावो के स्वामी ग्रह क्रूर और पापी ग्रह होना शुभता देता है, जबकि शुभ ग्रह भावो का स्वामित्व होना अपनी दशा के दौरान हानि देते हैं ।
कुण्डली के उपचय भाव : जन्म कुण्डली के 3, 6, 10, 11वे भावो को उपचय भाव कहा जाता है । उपचय का मतलब है गुजरते समय के साथ उत्थान होना , जैसे कि बढ़ती उम्र के साथ 3rd भाव यानी साहस बढ़ता है, 6th भाव से बढ़ती उम्र के साथ शत्रु बढ़ते हैं, बढ़ती उम्र के साथ अनुभव आने से दसम भाव और एकादश भावो की वृद्धि से आय और सामाजिक दायरा बढ़ते हैं ।
कुण्डली के त्रिक भाव : जन्म कुण्डली के 6, 8, 12वे भावो को त्रिक स्थान कहा जाता है । इन भावो से संबंधित ग्रह अपनी दशा के दौरान अशुभ फल जैसे स्वास्थ्य कमज़ोरी, शत्रु बाधा, चरित्र पर लांछन और मानहानि जैसे योग देता है । यह फल ग्रह के नैसर्गिक स्वभाव अनुसार होते हैं जैसे कि मंगल से चोट और दुर्घटना, बुध से गलत फैसलों से नुकसान, गुरु से बड़े अधिकारी लोगो की वजह से समस्या, शुक्र से हार्मोन्स से संबंधित समस्या, शनि से कानूनी मामलों से परेशानी ।