Janam Kundali me Shubh Ashubh aur Kamzor Guru ।। जन्म कुंडली में शुभ अशुभ और कमज़ोर गुरु

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ज्योतिष शास्त्र अनुसार मानव जीवन पर गुरु का प्रभाव और शुभ अशुभ लक्षण

ज्योतिष शास्त्र अनुसार गुरु को नैसर्गिक शुभ ग्रह कहा जाता है जिसकी प्रकृति कफ प्रधान है। गुरु धनु और मीन राशि का स्वामी है और जन्म कुंडली के नवम भाव का कारक ग्रह है। कर्क राशि में गुरु उच्च का होकर बलि और मकर राशि में नीच होने से कमज़ोर होकर शुभ फल देने में असमर्थ होता है। जबकि वृषभ, मिथुन, कन्या, और तुला शत्रु राशियां हैं इस नाते इन राशियों में भी गुरु कमज़ोर होने की वजह से शुभ फल देने में असमर्थ होता है। ज्योतिष शास्त्र अनुसार गुरु ग्रह बड़े भाई, गुरु, सही समझ, उच्च शिक्षा, सलाहकार, मोटापा, धार्मिक ग्रंथ, ईश्वर के प्रति आस्था, पुत्र सुख, धर्म और दान पुन्य का कारक है।

मजबूत और शुभ गुरु के लक्ष्ण

यदि जन्म कुंडली में गुरु मजबूत या शुभ फल दे रहा हो तो जातक को परिवार यानि जीवनसाथी और संतान के अच्छे सुख, उच्च शिक्षा में सफलता, आर्थिक सुख, ईश्वर में विश्वास, दान पुन्य में रूचि, और नौकरी कारोबार करते कम मेहनत में भी खूब लाभ और सम्मान मिलता है।

कमजोर और अशुभ गुरु के लक्ष्ण

यदि जन्म कुंडली में गुरु कमज़ोर या अशुभ फल दे रहा हो तो जातक की शिक्षा प्राप्ति में बाधा, पढ़ा हुआ भूल जाना, तरक्की प्राप्ति में बाधा, शुभ कार्यो में देरी, विवाह और संतान संबंधी बाधा, शरीर दुबला पतला, कफ जनित रोग से पीड़ित होता है।

स्वास्थ्य : यदि जन्म कुंडली में गुरु अशुभ फल दे रहा हो तो जिगर, गुर्दे, पेट संबंधी, थाईराइड रोग, साँस और कफ जनित रोग और महिलाओ में संतान प्राप्ति में बाधा आती है।

गुरु से संबंधित करियर पेशा व्यवसाय

यदि जन्म कुंडली में गुरु शुभ होकर कर्म या लाभ भाव से योग करे तो उच्च शिक्षा प्राप्त करके अध्यापक, किसी संस्थान के संचालक, सलाहकार या प्रमुख कार्यकर्ता, धर्म और अध्यात्म से जुड़े कार्य जैसे ज्योतिष, कर्म कांड, मेडिकल विषय, वित और प्रबंधन कार्य, लेखन कार्य, खाद्य पदार्थ, रस और फलों संबंधी कारोबार लाभ देते हैं।

गुरु से बनने वाले शुभ अशुभ योग

गुरु से बनने वाले शुभ योग की बात करें तो जन्म कुंडली में केंद्र के भाव में गुरु अपनी या उच्च राशि में होने से हंस नामक महापुरुष योग, चन्द्र गुरु युति से गजकेसरी योग, गुरु शनि युति से धर्म कर्म योग बनता है। जबकि अशुभ योग की बात करें तो जन्म कुंडली में चंद्रमा अशुभ होकर गुरु से छठे या आठवे भाव में होने से शकट योग और गुरु राहू युति से चांडाल योग बनता है।

यदि जन्म कुंडली में गुरु 1, 2, 4, 5, 9 या 12वे भाव में हो, अन्य भाव में यदि गुरु कर्क, धनु या मीन राशि का हो तो भी शुभ फल होते हैं।

यदि जन्म कुंडली में गुरु शुभ हो तो जातक के सभी कार्य बिना किसी बाधा के होते हैं, संतान सुख जरुर मिलता है और बुढ़ापा सुख से बीतता है। जातक के लिए 36 और 48वा वर्ष भाग्यशाली होता है।

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